उदयपुर। राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले का घोसुंडा कस्बा एक अनूठी परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। स्थानीय लोग मानते हैं कि शरद पूर्णिमा की रात से भगवान श्रीकृष्ण तीन दिन के लिए उनके गांव में ही रहते हैं। श्रीकृष्ण कब, कहां और किस रूप में उन्हें दर्शन दे जाएं, इसी आस में हर साल शरद पूर्णिमा की रात बारह बजे बाद यहां के लोग गांव की 12 कोस की परिक्रमा करते आए हैं। ये तीन दिन उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण रहते हैं। इस दौरान यहां तीन दिनी लालजी कानजी (कृष्ण-बलराम) मेला भी लगता है।

450 साल पुरानी परंपरा

इस साल मेला शनिवार से शुरू हो गया है और सोमवार तक चलेगा। जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर स्थित घोसुंडा में यह परंपरा करीब 450 साल पुरानी बताई जाती है। यहां के ग्रामीण बड़े ही गर्व से बताते हैं कि यहां के भगत परिवार के घर श्रीकृष्ण साधु के रूप में आए थे। यहां जौ की रोटी कढ़ी के साथ खाई थी। श्रीकृष्ण ने प्रसन्ना होकर उन्हें बालस्वरूप व चतुर्भुज रूप में दर्शन दिए।

गोवर्धन दास असमंजस में थे कि वे यह बात किसी को बताएंगे तो उपहास के पात्र बनेंगे तब श्रीकृष्ण ने उनके आग्रह को स्वीकार करते हुए गांव वालों को भी दर्शन दिए और मोर पंख वाला मुकुट बतौर निशानी छोड़ गए। भगत परिवार का दावा है कि श्रीकृष्ण से उपहार में मिला मोर मुकुट अभी भी उनके पास सुरक्षित है।

भक्त गोवर्धनदास के आग्रह पर होता है आयोजन

भक्तमाल पुराण में भी श्रीकृष्ण और भगत गोवर्धनदास का वर्णन मिलता है। यहां लगने वाले मेले का आयोजन एवं प्रबंध का जिम्मा ग्राम पंचायत के पास रहता है। ग्रामीणों की मान्यता है कि श्रीकृष्ण तीन दिन उनके गांव में रहते हैं। यह भक्त गोवर्धनदास के आग्रह पर हुआ। श्रीकृष्ण ने उन्हें इस बारे में वचन दिया था कि यदि यहां उनकी बाललीलाएं होती रहीं तो वे साल में तीन दिन यहां बिताएंगे।

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