पहली बार पुस्तकों की प्रिटिंग में छत्तीसगढ़ के प्रकाशनों ने दिल्ली को छोड़ पीछे

टीआरपी न्यूज/रायपुर। निजी प्रकाशनों से होड़ में लगातार पिछड़ने और पुस्तकों

के प्रकाशन में भारी अनियमितता की खबरों के लिए सुर्खियों में रहने वाले

छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक निगम की हालत अब सुधरती नजर आ रही है।

ऐसा पहली बार हुआ है जब पुस्तकों की प्रिटिंग के ​बुलाई गई निविदा में

छत्तीसगढ़ के प्रकाशनों ने दिल्ली सहित बाहरी प्रकाशन हाउस को छोड़

पीछे छोड़ दिया है। साथ ही सरकार के खजाने पर पड़ने वाले 10 करोड़ के

अतिरिक्त खर्च की बचत भी कर ली। इतना ही नहीं पाठ्यपुस्तक निगम

की पुस्तकों की प्रिटिंग की फिल्म के रख रखाव के लिए पिछले वित्त वर्ष

में सरकार के 3 करोड़ खर्च हुए थे, इस बार यह काम 1.5 करोड़ में पूरा हो

जाएगा। यानि सीधे.सीधे सरकार के खजाने में 1.5 करोड़ की बचत हो

जाएगी। दरअसल मुद्रण कार्य लिए बुलाई राष्ट्रीय निविदा में पूरी

पारदर्शिता का पालन किए जाने से ये सरकार के खजाने में ये बचत हो पाई है।

जिसका श्रेय कहीं न कहीं पाठ्यपुस्तक निगम की एमडी दिव्या मिश्रा व

महाप्रबंधक अशोक चुतर्वेदी को दिया जा सकता है।


आपको बता दें कि स्कूल शिक्षा विभाग का उपक्रम छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक

निगम ने वर्ष 2019 एवं 2020 के मुद्रण कार्य लिए राष्ट्रीय निविदा आमंत्रित

की गई थी। 3 दिसंबर 2019 को प्राप्त निविदाओं की टेक्निकल बिड खोली

गई और 7 दिसंबर 2019 को वित्तीय बिड खोली गई। इस राष्ट्रीय निविदा

में 26 मुद्रण प्रिंटिंग करने वाले छत्तीसगढ़ के 26 एवं बाहरी प्रदेश के 7

मुद्रकों ने निविदा की थी। गत 7 दिसंबर को खोली गई वित्तीय बिड में

12 मुद्रक प्रदेश के अंदर के और एक मुद्रक प्रदेश के बाहर के न्यूनतम

दर प्राप्त करने में सफल हुए। इस वित्तीय बिड की शासन के निर्देशानुसार

वीडियोग्राफी कराई गई। इसमें एक खास बात यह थी कि जो राजनीतिक

दबाव डालकर काम लेने का प्रयास करते थे वह सभी के सभी इसमें

असफल साबित हुए। उन्हें एक भी टन का काम नहीं मिल पाया।

पिछले साल खर्च हुए थे 19.30 करोड़

बता दें कि पिछले वर्ष के मुद्रण कार्य में छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक निगम

का 19.30 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। जबकि, इस वर्ष के वित्तीय बिड में

यही काम 13 करोड़ रुपए में पूरा हो जाएगा। इस साल पिछले वर्ष की

तुलना में 46% कम दर आए हैं जिससे छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक निगम

को करीब 6.30 करोड़ों रुपए की बचत होना तय माना जा रहा है।

जीरो टॉलरेंस की नीति पर सख्त हैं सीएम भूपेश की छवि

अब दबी जबान में यह चर्चा है कि जिन्हें मुद्रण कार्य नहीं मिला है वो एक

बार संवैधानिक संस्था में बैठे एक नेता के पास अपनी गुहार लेकर जा सकते हैं।

अब देखना यह है कि जो नियमानुसार मुद्रण कार्य का राष्ट्रीय निविदा के तहत

टेक्निकल बिड एवं वित्तीय बिट खोली गई है पर सरकार के मुखिया का

फैसला क्या आएगा। हालांकि,कुछ प्रिंटर्स कारोबारी ये कहते नजर आ रहे हैं

कि इस राष्ट्रीय निविदा के आमंत्रित करने के बाद और वित्तीय बिड खुलने

के बाद छत्तीसगढ़ के कई प्रिंटर्स संस्थानों को आर्थिक नुकसान

उठाना पड़ सकता है। क्योंकि, अधिकांश प्रिंटर्स बैंक से लोन लेकर अपनी

प्रिंटिंग प्रेस लगाए हैं। लेकिन, जो प्रक्रिया अपनाई गई है उसमें

स्कूल शिक्षा विभाग एवं छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक निगम ने पूरी

पारदर्शिता अपनाई है इसलिए शिकायत करने वालों को कोई राहत

मिलेगी इसकी संभावना कम ही लगती है।

गेंद सरकार के पाले में

आपको बता दें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पहले ही साफ कर चुके हैं कि प्रदेश

सरकार स्वच्छ पारर्दिशता के साथ जीरो टॉलरेंस की नीति के साथ काम

करने पर भरोसा रखती है। निविदा में किसी प्रकार की गड़बड़ी या जुगाड़

वाली सरकार अब सत्ता से बाहर हो चुकी है। ​फिलहाल गेंद अभी सरकार

के पाले में है। प्रिंटर्स का कहना है कि छत्तीसगढ़ शासन के सरकारी उपक्रम

को करोड़ की होने वाली बचत की अनदेखी किए जाने के

आसार कम नजर आ रहे हैं।

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