टीआरपी डेस्क। सदी के महानायक, लाखों करोड़ों लोगों के दिल की धडक़न और भारतीय फिल्मों

के सबसे बड़े पुरस्कार दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित अमिताभ बच्चन का बंगाल

से नाता जगजाहिर है। बंगाली मिठाईयां उनकी पसंद हैं। बांग्ला साहित्य उन्हें प्रिय है और वे

बंगाल के जमाई बाबू भी हैं। इसके साथ ही उन्हें फिल्मों का पहला ब्रेक भी ख्यातिलब्ध

फिल्म निर्देशक मृणाल सेन ने ही दिया।

बता दें कि साल 1969 में सेन निर्देशित हिंदी फिल्म भुवन सोम में अमिताभ की दमदार आवाज के जरिए

कथा का सूत्र गढ़ा गया। अमिताभ बॉलीवुड में संघर्ष करते रहे। इसी दौर में बंगाल के ही निर्देशक

ऋषिकेश मुखर्जी की ऑलटाइम हिट फिल्म आनंद में डॉ. भाष्कर मुखर्जी का किरदार निभाकर

अमिताभ ने राजेश खन्ना के दौर में अपनी छाप लगाई।

 

फिल्म आनंद में उनके किरदार का घरेलू नाम बाबू मोशाय लोगों की जुबान पर चढ़ गया।

आज भी बंगाल के लोगों को देश के दूसरे हिस्से में लोग बाबू मोशाय के नाम से ही बुलाते हैं।

आनंद फिल्म में बेहतर अभिनय के लिए बिग बी अपने करियर का पहला फिल्म फेयर अवार्ड

भी मिला। अपने ब्लॉग में अमिताभ ने स्वीकार किया कि ऋषिकेश मुखर्जी उनके और

उनके जैसे कई अभिनेता, अभिनेत्रियों के लिए गॉडफॉदर रहे। खैर अमिताभ के लिए

वह दौर संघर्ष का था। काम की कमी नहीं थी। आवाज में दम था। उनकी एंग्री यंग मैन

की छवि गढ़ी जा रही थी। हर फिल्म में एक नया किरदार, नई तरह की कश्मकश के

साथ बड़े पर्दे पर आता था।

सौदागर को फिल्म समीक्षकों ने सराहा

सन 1973 में एक बार फिर बंगाल की ग्रामीण पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म तैयार हुई।

उत्तर 24 परगना के कामदुनी गांव में महीने भर की शूटिंग हुई। लुंगी, कमीज, गमछा पहने

अमिताभ ने मेहनती पर लोभी किरदार मोती मियां में जान भर दी। धीमी गति से आगे

बढ़ती साहित्यिक कृति पर आधारित सौदागर को फिल्म समीक्षकों ने काफी सराहा।

इसी साल अमिताभ की जंजीर आई। जिसने उन्हें एंग्री यंग मैन का खिताब दिलाया।

फिल्मों से पहले अमिताभ ने कोलकाता में नौकरी भी की। अपने ब्लॉग में अमिताभ लिखते

हैं कि 60 के दशक में कोलकाता में 500 रुपए की नौकरी के दिन वे नहीं भूल सकते।

हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकार हरिवंश राय बच्चन के पुत्र अमिताभ ने कोलकाता के अपने

शुरुआती दिनों में बांग्ला सीखी। कोलकाता की शिपिंग फर्म बर्ड एंड कंपनी में करियर

की शुरुआत करने वाले अमिताभ ने सात साल कोलकाता में गुजारे। आज भी उन्हें

शहर की गलियां, चौराहे, रेस्तरां, हैपनिंग स्पॉट आमंत्रित करते हैं।

मृणाल दा आमी बांग्ला जानी

विख्यात फिल्म निर्देशक और अमिताभ बच्चन को अपनी फिल्म का वाचिक सूत्रधार बनाने वाले

मृणाल सेन ने साक्षात्कार में कहा था कि मुम्बई में उनके पास आए युवा ने उनसे बंगला में कहा

मृणाल दा आमी बांग्ला जानी, आमी कोलकाता छिलाम। बाद में मृणाल दा ने जवाब दिया कि

तुम्हारी बांग्ला जैसी भी हो लेकिन आवाज में दम है। क्या तुम मेरी फिल्म के वाचिक सूत्रधार

की भूमिका निभाओगे।

पीकू में पूरी की तमन्ना

निर्देशक सुजीत सरकार की वर्ष 2015 में रिलीज हुई फिल्म पीकू में अमिताभ ने एक बार फिर

कोलकाता के साथ अपनी जिंदगी जी। साइकल पर सवाल होकर अमिताभ शहर की सडक़ों पर

घूमते नजर आए। फिल्म की शूटिंग के बाद जब भी समय मिलता अमिताभ उन सभी जगहों पर

गए जहां करियर के शुरुआती दिनों में उन्हें लगाव था। यही नहीं शूटिंग के दौरान अमिताभ

कोलकाता के नामी चटपटे व्यंजन लेकर आते थे और उसकी विशेषता और स्वाद फिल्म

के सह कलाकारों से साझा करते थे।

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