हर 72 साल में एक दिन बढ़ जाती है तारीख 2081 से आगे 72 वर्षों तक 16 जनवरी को मनाई जाएगी संक्रांति 5000 साल बाद मकर संक्रांति फरवरी महीने के अंत में मनाई जाएगी

टीआरपी डेस्क। नए साल में सबसे पहला त्योहार मकर संक्रांति का होता हैं। इस बार 15 जनवरी 2020 को मकर संक्रांति मनाई जा रही है। सूर्य 14 जनवरी की रात करीब 02.07 बजे धनु से मकर राशि में प्रवेश करेगा, इसलिए 15 जनवरी को सूर्योदय के साथ स्नान, दान और पूजा-पाठ के साथ ये त्योहार मनेगा, लेकिन पिछले कुछ सालों से ये मकर संक्रांति कभी 14 तो कभी 15 जनवरी को मनाई जा रही है।

सूर्य की चाल के अनुसार मकर संक्रांति की तारीखों में बदलाव होता है। आने वाले कुछ सालों बाद ये पर्व 14 नहीं बल्कि 15 और 16 जनवरी को मनाया जाएगा। ज्योतिष के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। बता दें कि सूर्य के एक राशि से दूसरी में प्रवेश करने को संक्रांति कहते हैं।

ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक वर्ष 2008 से 2080 तक मकर संक्राति 15 जनवरी को होगी। विगत 72 वर्षों से (1935 से) प्रति वर्ष मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही पड़ती रही है। 2081 से आगे 72 वर्षों तक अर्थात 2153 संवत तक यह 16 जनवरी को रहेगी। सूर्य का धनु से मकर राशि में संक्रमण प्रति वर्ष लगभग 20 मिनट विलम्ब से होता है।

स्थूल गणना के आधार पर हर तीन साल में यह अंतर एक घंटे का तथा हर 72 वर्षो में पूरे 24 घंटे का हो जाता है। यही कारण है कि अंग्रेजी तारीखों के मान से मकर-संक्रांति का पर्व 72 वर्षों के अंतराल के बाद एक तारीख आगे बढ़ता रहता है। इसके अनुसार सन् 2077 के बाद से 15 जनवरी को ही मकर संक्रांति हुआ करेगी।

1000 साल पहले 1 जनवरी को मनाई जाती थी संक्रांति:

ज्योतिषीय आकलन के अनुसार सूर्य की गति हर साल 20 सेकंड बढ़ रही है। माना जाता है कि आज से 1000 साल पहले मकर संक्रांति 1 जनवरी को मनाई जाती थी। पिछले एक हज़ार साल में इसके दो हफ्ते आगे खिसक जाने की वजह से 14 जनवरी को मनाई जाने लगी। ज्योतिषियों के अनुसार सूर्य की चाल के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 5000 साल बाद मकर संक्रांति फरवरी महीने के अंत में मनाई जाएगी।

पहली बार 1902 में 14 जनवरी को मनाई गई थी संक्रांति:

काशी हिंदू विश्व विद्यालय के ज्योतिषाचार्य पं गणेश मिश्रा के अनुसार 14 जनवरी को मकर संक्रांति पहली बार 1902 में मनाई गई थी। इससे पहले 18वीं सदी में 12 और 13 जनवरी को मनाई जाती थी। वहीं 1964 में मकर संक्रांति पहली बार 15 जनवरी को मनाई गई थी। इसके बाद हर तीसरे साल अधिकमास होने से दूसरे और तीसरे साल 14 जनवरी को, चौथे साल 15 जनवरी को आने लगी। इस तरह 2077 में आखिरी बार 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाएगी। राजा हर्षवद्र्धन के समय में यह पर्व 24 दिसम्बर को पड़ा था। मुगल बादशाह अकबर के शासन काल में 10 जनवरी को मकर संक्रांति थी। शिवाजी के जीवन काल में यह त्योहार 11 जनवरी को मनाया जाता था।

1 सेकंड से भी कम समय में राशि बदलता है सूर्य:

सूर्य जब एक राशि छोड़कर दूसरी में प्रवेश करता है तो उसे सामान्य आंखों से देखना संभव नहीं है। देवीपुराण में संक्रान्ति काल के बारे में बताया गया है कि स्वस्थ एवं सुखी मनुष्य जब एक बार पलक गिराता है तो उसका तीसवां भाग तत्पर कहलाता है, तत्पर का सौवां भाग त्रुटि कहा जाता है तथा त्रुटि के सौवें भाग में सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश कर जाता है।

सूर्य के उत्तरायण होने का पर्व:

सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना उत्तरायण तथा कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाना दक्षिणायन होता है। उत्तरायण में दिन बड़े हो जाते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं। दक्षिणायन में ठीक इससे उल्टा होता है। धर्मग्रंथों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन और दक्षिणायन देवताओं की रात होती है। वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था।

आधे वर्ष यानी साल के 6 महीनों तक सूर्य आकाश के उत्तरी गोलार्ध में रहता है। उत्तरायण के छह महीनों में सूर्य, मकर से मिथुन राशि तक भ्रमण करता है। इसे सौम्य अयन भी कहते हैं। जब सूर्य मकर राशि में यानी 14-15 जनवरी से लेकर मिथुन राशि तक यानी 15-16 जुलाई तक रहता है। ये 6 महीनों का समय उत्तरायण कहलाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह माघ मास से आषाढ़ मास तक माना जाता है।

संक्रांति का अर्थ:

जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को सौर वर्ष कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना क्रान्तिचक्र कहलाता है। इस परिधि चक्र को बांटकर बारह राशियां बनी हैं। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्रान्ति कहलाता है। इसी प्रकार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को मकर संक्रान्ति कहते हैं। 12 राशियां होने से सालभर में 12 संक्रांतियां मनाई जाती हैं।

मकर संक्रांति है एक ऋतुपर्व:

सूर्य के राशि परिवर्तन से दो-दो माह में ऋतु बदलती है। मकर संक्रांति एक ऋतु पर्व है। यह दो ऋतुओं का संधिकाल है। यानी इस समय एक ऋतु खत्म होती है और दूसरी शुरू होती है। मकर संक्रांति सूर्य के दिनों यानी गर्मी के आगमन का प्रतीक पर्व है। ये त्योहार शीत ऋतु के खत्म होने और वसंत ऋतु के शुरुआत की सूचना देता है। इस दिन शीत ऋतु होने के कारण खिचड़ी और तिल-गुड़ का सेवन किया जाता है। यह अन्न शीत ऋतु में हितकर होता है।

दान-पुण्य का है विशेष महत्व:

15 जनवरी को सुबह सात बजकर 19 मिनट से दोपहर 12 बजकर 31 मिनट तक का समय ध्यान, पूजा-पाठ, स्नान व दान के लिए श्रेष्ठ रहेगा। ऐसी मान्यता है कि इस पर्व पर किया गया दान सौ गुना बढ़कर प्राप्त होता है। इसी कारण इस पर्व पर दान करने का विशेष महत्व है।

अमोघ फल की होती है प्राप्ति:

आचार्य दीपक तेजस्वी के अनुसार मकर सक्रांति पर्व पर सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। शनिदेव के मकर राशि का स्वामी होने के कारण ही इस पर्व को मकर संक्रांति कहा जाता है। चूंकि यह प्रमुख रूप से भगवान सूर्य की आराधना का पर्व है, इसलिए इस दिन व्रत रखने से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं और उपासक को अमोघ फल की प्राप्ति होती है।

जानिए शुभ मुहूर्त:

पंडित विनोद शास्त्री ने बताया कि मध्य रात्रि के बाद संक्रांति होने की वजह से इसके पुण्य काल का विचार अगले दिन ब्रह्म मुहूर्त से लेकर दोपहर तक होगा। इसी वजह से मकर संक्रांति बुधवार 15 जनवरी को मनाई जाएगी। मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त 15 जनवरी संक्रांति काल 07.19 बजे, पुण्यकाल-07.19 से 12.31 बजे तक, महापुण्य काल- 07.19 से 09. 03 बजे तक, संक्रांति स्नान- सुबह से, 15 जनवरी 2020 को होगा।

मकर संक्रांति पर तिल का कैसे प्रयोग करें?

सूर्य देव को तिल के दाने डालकर जल अर्पित करें।
स्टील या लोहे के पात्र में तिल भरकर अपने सामने रखें।
फिर ‘शं शनैश्चराय नम:Ó मंत्र का जाप करें।
किसी गरीब व्यक्ति को बर्तन समेत तिल का दान कर दें।
इससे शनि से जुड़ी हर पीड़ा से मुक्ति मिलेगी।

पड़ोसी देशों और भारत के राज्यों में मकर संक्रांति:

भारत के सभी राज्यों में मकर संक्रांति पर्व अलग-अलग नाम और रीति-रिवाजों के साथ उत्साह से मनाया जाता है। यह पर्व भारत के साथ ही नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, कंबोडिया, म्यांमार और थाइलैंड में भी अलग-अलग परंपराओं और नाम के साथ मनाया जाता है।

 

Chhattisgarh से जुड़ी Hindi News के अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें 

Facebook पर Like करें, Twitter पर Follow करें  और Youtube  पर हमें subscribe करें।