टीआरपी डेस्क। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण वित्त वर्ष 2020-21 का बजट पेश करने जा रही हैं। वित्त मंत्रालय के बाहर सीतारमण के साथ वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर समेत बजट निर्माण की पूरी टीम दिखी। इस बार भी सूटकेस की जगह बजट प्रपत्र को लाल कपड़े में ही बांधा गया है। निर्मला ने बजट की जगह बही-खाता का चलन पिछले बजट से शुरू किया था।
आइए जानते हैं, वित्त मंत्री की टीम में कौन-कौन से लोग हैं…
राजीव कुमार, वित्त सचिव :
वित्त मंत्रालय में टॉप ब्यूरोक्रैट राजीव कुमार ने बैंकिंग सुधार में कड़े फैसले लिए। उन्होंने बैंकों के रीकैपिटलाइजेशन के लिए बैंकों के मर्जर(विलय) का काम किया। उम्मीद की जा रही है कि इस बजट में वह बैंकिंग सेक्टर को संकट से उबारने के साथ-साथ खपत बढ़ाने के लिए क्रेडिट ग्रोथ बढ़ाने की दिशा में काम करेंगे।
अतनु चक्रवर्ती, आर्थिक मामलों के सचिव :
अतनु ने पिछले वर्ष जुलाई में कार्यभार संभाला था, जो सरकारी संपत्ति की बिक्री के एक्सपर्ट माने जाते हैं। उनके कार्यभार संभालने के बाद इकॉनमी की रफ्तार 5 फीसदी से नीचे आ गई लेकिन उनकी अगुवाई में बने पैनल ने ग्रोथ को पटरी पर लाने के लिए एक ट्रिल्यन डॉलर से ज्यादा का इन्फ्रास्ट्रक्टर प्रोग्राम तैयार किया। बजट घाटे के लक्ष्य तय करने के लिए उनके इनपुट अहम हैं। साथ ही, वह इकॉनमी में जान फूंकने के लिए संसाधन बढ़ाने पर भी काम कर रहे हैं।
टीवी सोमनाथन, व्यय सचिव :
सोमनाथन हाल में ही वित्त मंत्रालय में आए हैं। वह PMO में काम कर चुके हैं, लिहाजा शायद वह समझते हैं कि पीएम मोदी किस तरह का बजट देखना पसंद करेंगे। सोमनाथन पर सरकारी खर्च को इस तरह से मैनेज करने की जिम्मेदारी है जिससे फिजूल खर्च में कमी आए और मांग को बढ़ावा मिल सके।
अजय भूषण पांडे, राजस्व सचिव :
अजय भूषण पर संसाधन बढ़ाने की जिम्मेदारी है और संभवत: वह मंत्रालय के ऐसे अफसर हैं, जिनपर सबसे ज्यादा दबाव है क्योंकि सुस्ती के माहौल में राजस्व वसूली(रेवेन्यू कलेक्शन) उम्मीद से काफी रकम हुआ है। उम्मीद की जा रही है कि वह डायरेक्ट टैक्स कोड के कुछ प्रस्तावों को प्रभावित कर सकते हैं।
तुहीन कान्ता पांडे, विनिवेश सचिव :
एयर इंडिया की रणनीतिक बिक्री की जिम्मेदारी तुहीन कांता के हाथ में है। अन्य सरकारी कंपनियों के विनिवेश की जि्म्मेदारी भी इन्हीं के हाथ में है, ताकि सरकार की आय बढ़ सके। बहरहाल, मौजूदा वित्त वर्ष में 1.05 लाख करोड़ रुपये का टारगेट पूरा नहीं हुआ नहीं और इतने कम समय में पूरा होने के आसार भी कम हैं। ऐसे में अगले वित्त वर्ष में विनिवेश के जरिए फंड जुटाना बड़ी चुनौती होगी।
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