रायपुर/नई दिल्ली। समाज कल्याण विभाग में एनजीओ के जरिये घोटाला करने के मामले में आईएएस अफसरों ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल रिव्यू पिटीशन दाखिल की है।
अफसरों के वकील ने शीर्ष अदालत से दरख्वास्त की है कि इसे अंर्जेंट बेस पर सुना जाए। समझा जाता है कि पिटीशन स्वीकृत होने के बाद आज शाम तक इस पर सुनवाई हो सकती है।
उधर, अफसरों ने बिलासपुर हाईकोर्ट में भी फैसले को रिव्यू करने के लिए आवेदन किया है। आवेदन स्वीकृत हुआ है या नहीं, इस बारे में अभी कोई खबर नहीं है। चूकि डबल बेंच ने अफसरों के खिलाफ सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है। लिहाजा, अगर आवेदन मंजूर हुआ तो इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस की बेंच करेगी।
सुप्रीम कोर्ट पहुंचे आईएएस और पूर्व आईएएस अफसरों का कहना है कि एफआईआर दर्ज करने का आदेश देने के पहले उन्हें कोई नोटिस नहीं मिली। फिर राज्य श्रोत संगठन में वे पदेन सदस्य थे। इस नाते संगठन के क्रियाकलापों में उनकी कोई भूमिका नहीं थी। 2004 के बाद कई अधिकारी यह भी भूल गए थे कि वे कभी इस संगठन के पदेन सदस्य हैं।
अफसरों के एक वकील ने बताया कि डॉ. आलोक शुक्ला सचिव स्कूल शिक्षा के नाते श्रोत संगठन के सदस्य बने थे। वे 2006 में इस विभाग से हट गए और 2008 में डेपुटेशन पर भारत निर्वाचन आयोग में चले गए। जिस दौरान घपले का जिक्र किया जा रहा, उस समय आलोक शुक्ला दिल्ली में थे।
अफसरों के वकील इस पर भी सवाल उठा रहे कि पिछली सरकार ने माना कि इस मामले में गड़बड़ी हुई है तो कोई कार्रवाई क्यों नहीं की। कम-से-कम हमारे मुवक्किलों को नोटिस देकर पूछना चाहिए था कि इसमें उनकी क्या भूमिका है। नोटिस अगर दी गई होती तो अधिकारियों का पक्ष़्ा रखने का मौका मिल गया होता।
बता दें कि बिलासपुर हाईकोर्ट ने 31 जनवरी को इस मामले में बड़ा फैसला देते हुए दो रिटायर चीफ सेक्रेटरी, एक रिटायर एसीएस, एक पूर्व आईएएस एक प्रमुख सचिव समेत समाज कल्याण विभाग के नौ अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई को एक हफ्ते के भीतर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था।
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