रायपुर : राजधानी के प्रेस क्लब में एडवोकेट सुदीप श्रीवास्तव ने प्रेस कांफ्रेंस करते हुए हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदान आबंटन को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार पर जमकर निशाना साधा। वार्ता में सुदीप श्रीवास्तव ने बताया कि राजस्थान के मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर हसदेव अरण्य क्षेत्र में पीईकेबी (परसा इस्ट केते बसान) खदान के दायीं और बायीं ओर स्थित परसा और केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक में कोयला खनन की अनुमति देने की मांग की है। लेकिन अगर इस क्षेत्र में खनन को बढ़ावा दिया गया तो ऐसा करना क्षेत्र के लिए बहुत ही हानिकारक सिद्ध होगा। यह पूरा क्षेत्र अनुसूची 5 के अंतर्गत आदिवासी क्षेत्र है और हसदेव नदी के जल ग्रहण वाले घने जंगल से युक्त है। यहाँ पर खनन की अनुमति देने से जैव विविधता को भारी नुकसान होगा ही, वही मानव हाथी संघर्ष बढ़ेगा एवं हसदेव नदी के सतह जल प्रवाह के साथ-साथ क्षेत्र की वर्षा में भी कमी आयेगी। कोयला खनन खुली खदानो होने के कारण पूरे क्षेत्र से मिट्टी तेजी से बहते हुये हसदेव नदी में नीचे स्थित हसदेव बांगो बांध में जमा होगी और इससे बांध की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।


इस मामले में एडवेकेट सुदीप श्रीवास्तव के द्वारा एन. जी. टी. (National Green Tribunal) द्वारा यचिका लगाई गयी थी जिसके बाद प्रकरण में हसदेव अरण्य में खनन की अनुमतियों को निरस्त कर दिया गया था और आई. सी. एफ. आर. ई. (इंडियन कॉन्सिल ऑफ फारेस्ट रिसर्च एंड एजुकेशन) तथा डब्ल्यू. आई. आई. (वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया) के द्वारा निर्धारित प्रश्नों के आधार वर इस अरण्य क्षेत्र का अध्ययन कराने के निर्देश दिये गए थे। उक्त निर्देश के बाद भी राज्य और केन्द्र सरकार ने अध्ययन के आदेश तक नहीं दिये तो एडवोकेट सुदीप श्रीवास्तव के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर अध्ययन करने का दबाव बनाया गया था।
श्रीवास्तव ने बताया कि हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खनन होने से उत्तर छत्तीसगढ़ की जैव विविधता को भारी नुकसान और मानव हाथी संघर्ष में भारी वृद्धि के खतरे को देखते हुये वर्ष 2010 में सूरजपुर, सरगुजा और कोरबा जिलों के घने जंगलो को कोयला खनन के लिये “नो गो” घोषित किया गया था। लेकिन इसके बावजूद उद्योगपतियों के दबाव में “नो गो” क्षेत्र होने के बावजूद परसा इस्ट केते बसान (पीईकेबी) कोल ब्लॉक में खनन की अनुमति दी गई। यह कोल ब्लॉक राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम को आबंटित था। यहाँ खनन की अनुमति 2012 में राजस्थान के तात्कालिक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मांग पर छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने केन्द्र सरकार पर दबाव बनाकर अनुमति दिलाई गई थी।
क्यों है खनन पर आपत्ती
हसदेव अरण्य क्षेत्र हसदेव नदी के आस पास का क्षेत्र है, और इसी नदी पर हसदेव बांगो बांध परियोजना भी संचालित है। अगर आस पास के क्षेत्र में खनन की अनुमति दे दी जाती है तो इस बांध और उससे संचालिक सभी योजनाओं पर इसका बहुत विपरीत असर देखने को मिलेगा। छत्तीसगढ़ में वर्तमान में कुल कृषि भूमि का लगभग 38 प्रतिशत सिंचित है। इसमें भी सर्वाधिक योगदान 2 बड़े बांधो मिनी माता हसदेव बांगो बांध (क्षमता 3000 मिलीयन क्यूबिक मीटर) और रविशंकर शुक्ल गंगरेल (क्षमता 4000 मिलीयन क्यूबिक मीटर) के कारण है। राज्य का जांजगीर चाम्पा जिला हसदेव बांगो बांध से 80 प्रतिशत से अधिक सिंचित है। जिसमें 2 लाख 55 हजार हेक्टेयर (सवा छः लाख एकड़) में खरीफ फसल की सिंचाई, 1 लाख 27 हजार हेक्टेयर (तीन लाख एकड़ से अधिक) रबी फसल की सिंचाई, 64 हजार हेक्टेयर (डेड़ लाख एकड़ से अधिक) तीसरी फसल की सिंचाई से साथ साथ कोरबा शहर में पूरे साल और जांजगीर जिले में गर्मी के समय को पेय जल की व्यवस्था भी शामिल है। इसके अलावा 10000 मेगावाट ताप विद्युत संयत्र को जल आपूर्ति और 120 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन भी इस परियोजना से होते हैं।

विगत 30 वर्षों के समय में बांध की क्षमता में लगभग 8 प्रतिशत की कमी आ चुकी है और अब बांध की जीवित क्षमता 2800 मीलियन क्यूबिक ही बची है। राज्य शासन तीसरी फसल को पानी देना बंद कर चुका है और स्वीकृत मात्रा से अधिक जल ताप विद्युत सयंत्र को दे रहा है जिससे सिंचाई कमी आ रही है। इसके बावजूद हसदेव बांगो बांध प्रदेश की सबसे बड़ा सिंचाई संरचना है जिसने जांजगीर-चाम्पा, कोरबा और रायगढ़ जिले के किसानो को समृद्ध किया है। इस तरह बांध क्षेत्र प्रदेश की आर्थिक उन्नति में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। और इसे होने वाला किसी भी तरह का नुकसान सीधे प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर चोट करेगा।
जैविक और प्राकृतिक दृष्टि से भी है महत्वपूर्ण
हसदेव अरण्य क्षेत्र जैविक और प्राकृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। हसदेव अरण्य के 60% क्षेत्र में घना जंगल, 6% क्षेत्र में अत्यधिक घना जंगल, 43% क्षेत्र मेँ कम घना जंगल, 20% क्षेत्र में खेती एवं गांव और 1 % क्षेत्र में नदी-नाले और तालाब हैं। यहाँ पेड़ पौधो की 640 प्रजातियां (33 प्रजातियां विलुप्तप्राय एवं 128 औषधीय गुण वाले) पाई जाती हैं इनमें 146 वृक्ष, 363 जड़ी बुटियां, 66 झाड़िया और 65 प्रकार की लतायें शामिल हैं। इस क्षेत्र में 25 प्रकार के स्तनधारी जीव रहते हैं जिनमें हाथी, भालू, तेंदुआ आदि शामिल हैं इसके साथ ही यहाँ बाघ के होने के प्रमाण भी पाए गए हैं। इसके साथ ही क्षेत्र में 92 प्रकार के पक्षी, 25 से अधिक प्रकार के रेप्टाइल एवं मछलियां भी पाई जाती हैं।

कहीं और खनन हेतु भूमी आबंटन से हो जाएगा समाधान
राजस्थान और छत्तीसगढ़ के बीच मध्यप्रदेश में कई कोल ब्लॉक है जो किसी को आवंटित नहीं है। और इनमें से अधिकांश कोल ब्लॉक जैविक और प्राकृतिक संरक्षण की दृष्टि से इतने महत्वपूर्ण नहीं हैं। यदि राजस्थान छत्तीसगढ़ के बजाय मध्यप्रदेश में कोयला ब्लॉक आवंटित करने की मांग करें तो केवल रेल भाड़े में ही राजस्थान को प्रति टन लगभग 400 रूपये की बचत होगी। इसके बावजूद उद्योगपतियों के दबाव में राजस्थान के मुख्यमंत्री चाहते है कि पीईकेबी खदान के दाये और बाये ओर स्थित परसा और केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक में छत्तीसगढ़ कोयला खनन की अनुमति दे।
राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम का निजी कंपनी से है करार
पीईकेबी खदान के लिये राजस्थान विद्युत निगम का एक प्राइवेट कम्पनी के साथ लाइफ टाइम एग्रीमेंट है। दोनों के बीच करार के अनुसार राजस्थान विद्युत निगम को अपने ही ब्लॉक का कोयला बाजार दर या उससे भी अधिक दर पर मिल पा रहा है। जबकि खनन का पूरा लाभ और रिजेक्ट के नाम पर 15 से 20 प्रतिशत कोयला निजी कम्पनी रख रही है, जो बाजार में बेचा भी जा रहा है। इस समझौते के कारण राजस्थान में उपभोक्ताओं को बिजली मंहगी पड़ रही है।
छत्तीसगढ़ में हो रहा सर्वाधिक कोयला उत्पादन
वर्तमान में छत्तीसगढ़ में कोयले का वार्षिक उत्पादन देश में सर्वाधिक है जो की 458 मिलीयन टन है। छत्तीसगढ़ से 30 प्रतिशत अधिक कोयला भण्डार होने के बावजूद उड़ीसा और झारखण्ड कम कोयला उत्पादन कर रहे है। अर्थात छत्तीसगढ़ में पहले से ही अन्य राज्यों से अधिक किसानों को विस्थापित और जंगलों को कोयले के लिए समाप्त किया जा चुका है। इसके बाद भी यदि केन्द्र और राज्य सरकारें छत्तसीगढ़ में कोयला उत्पादन बढ़ाना चाहती है तो यह राज्य के आदिवासी क्षेत्रों के साथ अन्याय है।

नहीं पड़ेगी यहाँ खनन करने की आवश्यकता
एडवोकेट श्रीवास्तव ने बताया कि हसदेव अरण्य क्षेत्र के जंगल और नदी नाले इस बांध के लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। ठीक बांध के ऊपर 453 वर्ग किमी क्षेत्र में 29 कोल ब्लॉक स्थित है जिसमें 5 हजार मिलीयन टन कोयले का भण्डार है। वर्तमान में राज्य में कोयले का भण्डार 58 हजार मिलीयन टन से अधिक है अर्थात् हसदेव अरण्य में राज्य के कुल कोयला भण्डार का 10 प्रतिशत हिस्सा भी नहीं है। हसदेव अरण्य के अलावा उपलब्ध अन्य कोयला भण्डारों से यदि आज की अपेक्षा 3 गुना भी उत्पादन कर दिया जाये तब भी कोयले के भंडार 100 साल में समाप्त नहीं होंगे। और जिस तरह पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन के कारण कोयले के बजाय सोलर और विंड एनर्जी पर जोर दे रहा है, कोयले का उपयोग भविष्य में कम ही होना है अत: अधिक खदाने खोलने से कोई फायदा नहीं होगा और भविष्य में ये खदाने बिना पूरा उत्पादन किये बंद हो जायेगी।
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