ये संत हैं या भुजंग ? धर्मसंसद में विष - वमन!
ये संत हैं या भुजंग ? धर्मसंसद में विष - वमन!

श्याम वेताल

हम आज 73 वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं और इस मौके पर हम सभी देशवासियों को खुशहाल देखना चाहते थे लेकिन ऐसा नहीं है। खबर है कि पिछले पांच सालों में 20 फ़ीसदी सबसे गरीब परिवारों की आमदनी 53 प्रतिशत घट गयी है जबकि , इसी अवधि में 20 फीसदी सबसे अमीर वर्ग की कमाई 39 प्रतिशत बढ़ गयी है। यह खबर मुम्बई की पीपुल्स रिसर्च ऑन इंडियाज कंज्यूमर इकोनॉमी के सर्वे के आधार पर प्रकाशित हुई है।

वाह ….! अगर अमीरों की कमाई भी पूरी 53 प्रतिशत ही बढ़ी होती तो न्यूटन का तीसरा नियम सटीक बैठता। ‘ हर क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है ‘ सिर्फ 14 प्रतिशत की ही कसर रह गयी।

यह विचार करने योग्य विषय है कि 2005 से 2016 तक 20 फ़ीसदी सबसे गरीब लोगों की आय में 183 प्रतिशत की वृद्धि होती है लेकिन इसके बाद के सालों में गिरावट दर्ज़ होती है ……..क्यों ?

जहाँ तक कोविड महामारी का प्रश्न है , वह तो वर्ष 2020 ,मार्च महीने से शुरू हुई लेकिन गरीबों की आय में ग्रहण पहले ही लग गया …….. क्यों ?

महामारी के कारण वर्ष 2020 में अर्थव्यवस्था जरूर डगमगाई लेकिन 2021 में स्थिति काफी कुछ सुधर गयी। इस सुधार से अमीर वर्ग को तो अत्यधिक लाभ हुआ लेकिन गरीब वर्ग गरीब ही होता गया ……. क्यों ?

देश के गरीबों की इस दुर्दशा के लिए हमारी सरकार की नीतियां और दूरदृष्टि जिम्मेदार है क्योंकि वर्ष 2016 में जब गरीबों की आय में गिरावट शुरू हुई ( जैसा आंकड़े बता रहें हैं ) उसी समय सरकार को सावधान हो जाना चाहिए था और गिरावट को रोकने के उपाय करने चाहिए थे लेकिन हमारे नीति – नियंताओं की दृष्टि सिर्फ अमीरों की ओर थी और अमीरों को और अमीर बनाने की नीतियां बन रहीं थी। बेचारे गरीबों को वर्ष 2020 में आयी महामारी ने कोढ़ में खाज का काम किया।

महामारी के कारण देश में लॉक डाउन लगाया गया जिसकी वजह से उद्योग – धंधे चौपट हुए। लोगों की नौकरियां गईं। जहाँ नौकरियां बचीं वहां वेतन में कटौती हुई। छोटे व्यवसायी लड़खड़ाकर गिर पड़े और श्रमिको की हालत तो अधमरे सी हो गयी। बाहर के राज्यों में काम करने वाले श्रमिकों को घर लौटना पड़ा। वापसी के दौरान कई श्रमिकों की भूख – प्यास से मौत हो गयी। जो बच कर किसी तरह अपने गांव – घरों तक पहुंच गए उनकी आमदनी ठप हो गयी।

महीनो घर पर रहे। हालात सुधरे लेकिन उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। हज़ारों श्रमिकों की छूटी नौकरी वापस नहीं मिली सरकार की ओर से कोई मुआवज़ा। ऐसी स्थिति में गरीब का और गरीब होना स्वाभाविक था लेकिन सरकार का इनकी सुध न लेना अस्वाभाविक था जिसका परिणाम आज सामने आ रहा है।

कभी – कभी ऐसा लगता है कि राहुल गाँधी केंद्र सरकार पर अमीरों से दोस्ती निभाने वाली सरकार होने का जो आरोप लगाते हैं वह सही है क्योंकि सरकार की नीतियां ऐसी ही बनती हैं कि गरीबों का कोई फायदा हो न हो , अमीरों का जरूर होना चाहिए। अब मुम्बई की पीपुल्स रिसर्च ऑन इंडियाज कंज्यूमर इकोनॉमी के सर्वे आने के बाद हो सकता है कि केंद्र सरकार के कानो में जूं रेंगे और मजदूरों एवं असंगठित श्रमिकों के लिए कोई नई रोज़गार योजना बनाई जाय। आखिर 2024 का आम चुनाव भी बहुत दूर नहीं है।