ध्वनी प्रदूषण से है गर्भपात का खतरा, गर्भस्थ शिशु के मानसिक तथा सुनने की क्षमता पर पड़ता है असर

रायपुर। हमारी 6 इंद्रियों में सुनने की क्षमता का अपना विशेष स्थान है, जो नवजात शिशु के पैदा होने के बाद से उसके संपूर्ण विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आधुनिक जीवन शैली ने दिन और रात के अंतर को समाप्त कर दिया है। उक्त बातें आज World Hearing Day के अवसर पर आयोजित एक वेबीनार में कही गई।

ध्वनि प्रदूषण समाज के द्वारा ही पैदा किया गया प्रदूषण है और इसे समाज को ही नियंत्रण में लाना पड़ेगा। पिछले कई दिनों में ध्वनि प्रदूषण को लेकर उत्पन्न हुए विवाद की वजह से शहर में कुछ लोगों की हत्याएं भी हुई है और यह एक गंभीर विषय है। एक निश्चित सीमा के बाद ध्वनि की तीव्रता मानसिक स्तर को प्रभावित करती है।

तेज आवाज बज रहे लाउडस्पीकर और डीजे की ध्वनि आसपास रह रहे लोगों के अंदर चिड़चिड़ापन और गुस्सा पैदा कर रहे हैं और इसकी परिणिति मारपीट और हत्या के रूप में हो जाती है। आसपास के पेड़ों पर रह रहे पक्षियों के बच्चे मर जाते हैं और जहां यह तीव्र ध्वनि हो उसके आसपास के पशु या तो भयभीत हो जाते हैं या हिंसक हो जाते हैं।

यहां तक कि इस तीव्र ध्वनि की वजह से गर्भस्थ माताओं में गर्भपात भी बढ़ सकता है और गर्भस्थ शिशु के मानसिक तथा सुनने की क्षमता पर भी फर्क पड़ता है क्योंकि उसके सभी अंगों का विकास गर्भावस्था के दौरान ही हो रहा होता है। तेज आवाज से पर्यावरण, सामाजिक व्यवस्था और स्वास्थ्य सभी प्रभावित हो रहे हैं विशेषकर बुजुर्ग, बीमार मरीज, बच्चे और गर्भवती स्त्रियां।

लगातार तेज आवाज से बच्चों में मानसिक विकास में फर्क पड़ता है, उनकी बौद्धिक क्षमता कम होती है, उनके अंदर क्रोध व हिंसा का जन्म होता है और आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती है। मनोवैज्ञानिकों के द्वारा काउंसलिंग के दौरान यह पाया गया है कि ध्वनि प्रदूषण की वजह से बच्चों का मन अशांत हो रहा है और उनमें बहुत से मानसिक विकार पैदा हो रहे हैं , जो उनके भविष्य के लिए बेहद खतरनाक हैं।

अतः अब यह जरूरी हो गया है कि, समाज का हर वर्ग ध्वनि प्रदूषण की गंभीरता को समझे और अपने बच्चों का भविष्य सुधारने के लिए ध्वनि प्रदूषण रोकने में सक्रिय भूमिका निभाए। जरूरी है कि बच्चों को सामाजिक और पारिवारिक संबंधों की शिक्षा प्रारंभ से दी जाए। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन National Initiative for Safe Hearing के विषय पर कार्य कर रहा है। देश में मोटर व्हीकल एक्ट के तहत ध्वनि प्रदूषण को लेकर कड़े नियम बनाए गए हैं, जिन्हें पालन करवाने के लिए प्रशासनिक सख्ती और सामाजिक जागरूकता की सख्त आवश्यकता पर बल दिया गया।

Industrial Safety Law के कड़ाई से पालन तथा उद्योगों में कार्य कर रहे लोगों की सुनाई देने की क्षमता की नियमित समय पर जांच की आवश्यकता भी बताई गई। समाज सेविका मनजीत कौर बल ने समाज को तीन हिस्सों में बांटा , पहला हिस्सा वह जो यह चाहता है कि ध्वनि प्रदूषण बंद हो परंतु आवाज उठाने से डरता है, दूसरा हिस्सा वह जो चाहता है कि ध्वनि प्रदूषण बंद हो परंतु अपने यहां किसी भी समारोह में स्वयं तेज आवाज में लाउडस्पीकर बजाता है, तीसरा वर्ग वह है जो पढ़ा-लिखा होने के बावजूद भी गैर जिम्मेदाराना रवैया अपनाता है और तेज आवाज में लाउड स्पीकर और संगीत बजाना अपनी शान समझता है।

अब समय आ गया है कि लोग ध्वनि प्रदूषण से हो रही मानसिक और शारीरिक बिमारियों की ओर ध्यान दें और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए एक दूसरे से सहयोग करें। ट्रैफिक पुलिस ने शिकायत हेतु नंबर जारी किए हैं, उस पर ऑडियो और वीडियो बनाकर अपलोड करें और शिकायत करें। शिकायत करने वालों का नाम गुप्त रखा जाएगा, ऐसा यातायात विभाग का दावा है। प्रोफ़ेसर केशरी लाल वर्मा जी ने चिंता प्रकट करते हुए कहा कि परीक्षा के समय आसपास तेज आवाज में बज रहे लाउडस्पीकर बच्चों की तैयारियों को बहुत बुरी तरह से प्रभावित करते हैं, इन पर रोक लगाया जाना जरूरी है।

सुनने की क्षमता में कमी के बारे में चर्चा करते हुए डॉ राकेश गुप्ता ने कहा कि जरुरी है कि चाहे बुजुर्ग हो या बच्चे सही समय पर और जल्दी यदि उनकी कम हो रही श्रवण क्षमता की जांच कर ली जाए तो देश में 70 लाख से अधिक श्रवण बाधित लोगों में से 95% लोगों की सुनने की क्षमता को ठीक किया जा सकता है। विशेष कर बच्चों में यदि 6 वर्ष की उम्र से पहले Cochlear Implant सर्जरी कर दी जाए तो उनके मानसिक विकास में आने वाली बाधा को दूर किया जा सकता है। छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से इस तरह की सर्जरी में विशेष मदद दी जाती है तथा साथ ही जरूरतमंद लोगों को श्रवण यंत्र भी उपलब्ध करवाए जाते हैं।

आईएमए रायपुर अध्यक्ष डॉ विकास अग्रवाल ने कहा कि ध्वनि प्रदूषण जहां एक ओर लोगों को मानसिक रुप से बीमार बना रहा है, वहीं बढ़ते हुए गर्भपात और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों का भी कारक है। जरुरी है कि जनता जागरुक हो और अपने परिवार के सदस्यों में यदि सुनने की क्षमता कम लगे , तो तुरंत चिकित्सकीय परामर्श लें। ताकि ऐसे व्यक्तियों में पनप रहे अवसाद तथा डिप्रेशन को कम किया जा सके और उन्हें समाज की मुख्यधारा में जोड़ा जा सके। साथ ही समाज को सक्रिय रुप से आगे आकर प्रशासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ आवाज उठाना भी जरुरी है, ताकि देश का भविष्य सुरक्षित और स्वस्थ रहें।

बता दें कि आज World Hearing Day के अवसर पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन रायपुर तथा एओआई रायपुर के सौजन्य से तथा Alliance for Behavioral Changes In Chhattisgarh के सहयोग से ध्वनि प्रदूषण तथा कम हो रही श्रवण क्षमता के विषय में जन जागरूकता हेतु एक ऑनलाइन वेबीनार का आयोजन किया गया था। इस आयोजन के मुख्य वक्ता रहे पं. रविशंकर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर केशरी लाल वर्मा, समाज सेविका मनजीत कौर बल, वरिष्ठ नाक कान गला रोग विशेषज्ञ डॉक्टर राकेश गुप्ता तथा इंडियन मेडिकल एसोसिएशन छत्तीसगढ़ के पूर्व अध्यक्ष डॉ महेश सिन्हा । इनके अतिरिक्त वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ तथा समाजसेवीका डॉ कमल वर्मा एवं AOI के रायपुर अध्यक्ष डॉ अनिल जैन ने भी अपने विचार रखे।