High Court's decision on compassionate appointment, 'Family member cannot accept father-in-law doing government service, daughter-in-law should be given job'
High Court's decision on compassionate appointment, 'Family member cannot accept father-in-law doing government service, daughter-in-law should be given job'

रायपुर। बिलासपुर 16 मार्च, देश के अपने किस्म के पहले मामले में आज छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति आर.सी.एस. सामंत की पीठ ने केंद्र से, याचिकाकर्ता रायपुर के ब्यास मुनि द्विवेदी की याचिका पर जवाब मांगा है।

याचिकाकर्ता की तरफ से बताया गया कि छत्तीसगढ़ वन विभाग, असम के मानस नेशनल पार्क से से एक नर और एक मादा अर्थात दो वन भैंसों को पकड़ कर लाया है। जिसके लिए पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार ने अनुमति दी थी कि वन भैसों को समुचित प्राकृतिक वास में छोड़ा जायेगा। परंतु वन अधिकारियों ने दोनों वन भैसों को छत्तीसगढ़ के बारनवापारा अभ्यारण में बाड़े में बंधक बना रखा है, जो कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के प्रावधानों के तहत अपराध है, जिसके लिए कम से कम 3 साल जो कि 7 साल हो सकती है की सजा का प्रावधान है।

गौरतलब है कि वन भैसा, बाघ के समान ही अनुसूची-एक का वन्य प्राणी है। इनको तब तक बंधक नहीं बनाया जा सकता जब तक कि यह सुनिश्चित नहीं हो जाये कि उन को पुनर्वासित नहीं किया जा सकता, जैसे की बाघ के मामले में ऐसी चोट लगने से जो ठीक न हो सके, जिस से वह शिकार न कर सके। वन भैसों के मामले में तो केंद्र से अनुमती ही इस शर्त के साथ मिली थी कि उन्हें उचित रहवास वाले वन में छोड़ा जायेगा, फिर भी उन्हें बंधक बना रखा गया है।

द्विवेदी ने बताया कि क्योंकि वन भैंसे असम से छत्तीसगढ़ लाने में 4 आई.एफ.एस. जिम्मेदार है अतः उनके विरुद्ध अभियोजन की अनुमति पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ही दे सकता है। अत: अभियोजन के लिए उन्होंने सितंबर 2021 में अनुमति देने की मांग मंत्रालय से की थी, बाद में कई रिमाइंडर भी भेजे गए, परंतु मंत्रालय द्वारा कोई कार्यवाही नहीं किए जाने पर कोर्ट से अभियोजन की अनुमति के आवेदन पर निर्णय लेने हेतु आदेशित करने की मांग की गई, जिस पर कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा है।

क्या है पूरा मामला

छत्तीसगढ़ वन विभाग वर्तमान में पदस्थ प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) पीवी नरसिम्ह राव आई.एफ.एस. तथा तत्कालीन अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) वर्तमान में सदस्य सचिव बायो-डाइवर्सिटी बोर्ड अरुण कुमार पांडे, आई.एफ.एस. के कार्यकाल में अप्रैल 2021 में असम से वन भैसा लेकर आया, जिन्हें बारनवापारा अभ्यारण में बाड़े में कैद कर रखा है, इनके विरुद्ध अभियोजन की अनुमती मांगी गई है।

पूर्व में पदस्थ सेवानिवृत्त आई.एफ.एस. प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) कौशलेंद्र कुमार सिंह ने प्लान बनाया था कि असम से पांच “मादा” वन भैंसों को पकड़ कर लाया जाएगा और यहां पर बंधक बनाकर उनसे प्रजनन कराया जाएगा और जो वन भैसे पैदा होंगे उन को वन में छोड़ा जाएगा। वन अधिकारी असम के वन भैसों का उदंती सीता नदी अभ्यारण में रखे गए वन भैसों से मेल करा कर नई जीन पूल तैयार करना चाहते थे। इनके विरुद्ध अभियोजन की अनुमती मांगी गई है।

विरोध में रहा है वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया

गौरतलब है कि देश के प्रतिष्ठित संस्थान वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया असम से वन भैंसा छत्तीसगढ़ लाने के विरुद्ध रहा है। वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के अनुसार छत्तीसगढ़ के वन भैंसों का जीन पूल पूरे विश्व में सबसे यूनिक है, अतः दो जीन पूल अर्थात छत्तीसगढ़ और असम के वन भैसों का जीन पूल को नहीं मिलाना चाहिए।

बाद में बदला गया प्लान

बाद में निर्णय लिया गया कि असम से पांच मादा वन भैसों को लाने के साथ साथ एक नर वन भैसा भी लाया जाये इसके लिए पूर्व में पदस्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) वर्तमान पदस्थापना प्रधान मुख्य वन संरक्षक, स्टेट फॉरेस्ट रिसर्च ट्रेंनिंग इंस्टीट्यूट रायपुर अतुल कुमार शुक्ला द्वारा असम से एक वन ऐसा लाने की अनुमति मांगी गई।इनके विरुद्ध अभियोजन की अनुमती मांगी गई है।

मानस के जंगल में स्वछंद विचरण करने वाले वन भैसे आजीवन रहेंगे कैद

द्विवेदी ने बताया कि वन विभाग के दस्तावेज पूर्ण: स्पष्ट करते है कि असम के मानस नेशनल पार्क से लाए गए दो वन भैसों को आजीवन बाड़े में कैद कर प्रजनन कराने की योजना है। वन विभाग 4 मादा वन भैसों को असम से और लाने वाला है तथा इन सभी वन भैसों को और इन से पैदा हुए वन भैसों को आजीवन कैद में रहना होगा, इन्हें वन में छोड़ने का कोई भी प्लान वन विभाग के पास नहीं है। द्विवेदी ने बताया कि अभियोजन की अनुमती मिलने उपरांत उनके द्वारा दोषियों को सजा दिलाने हेतु वाद दायर किया जायेगा।

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