वन्य पशु प्रेमी ने तेंदुओं को प्रताड़ित करने से रोकने हाई कोर्ट में लगाई याचिका
वन्य पशु प्रेमी ने तेंदुओं को प्रताड़ित करने से रोकने हाई कोर्ट में लगाई याचिका

बिलासपुर। वन्य पशु प्रेमी नितिन सिंघवी ने वन विभाग के अधिकारियों की कारगुजारी के खिलाफ एक बार फिर हाई कोर्ट की शरण ली है। इस बार उन्होंने छत्तीसगढ़ में तेंदुओं के साथ हो रहे अत्याचार को रोकने को लेकर एक जनहित याचिका दायर की है जिसकी सुनवाई करते हुए हाइकोर्ट ने शासन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिका की अगली सुनवाई 4 हफ्ते बाद निर्धारित की गई है।

बढ़ा रहे हैं मानव-तेंदुआ द्वंद्व

याचिकाकर्ता नितिन सिंघवी की तरफ से कहा गया है कि वन विभाग के अधिकारी ही मानव-तेंदुआ द्वन्द बढ़ा रहे हैं। इस बात का बिना पता लगाए कि कोई तेंदुआ मनुष्य के लिए खतरनाक है या नहीं, घटना होते ही पिंजरा लगा देते हैं। फिर उसे पकड़ने के बाद वे दूसरे स्थान पर छोड़ देते हैं।

रहवास से दूर छोड़ना होता है खतरनाक

दरअसल तेंदुए को पकड़कर दूसरी जगह छोड़ने का उपाय समस्या को दूर करने की बजाय बढ़ाने वाला होता है। कई किलोमीटर दूर नए जंगल में छोड़े जाने पर तेंदुआ अपने को अनजान जगह पर पाकर परेशान हो जाता है। अत्यधिक तनाव, भूख, सदमे और अवसाद में उसे समझ में नहीं आता कि वह क्या करे। ऐसे में नए स्थान पर वह पालतू पशुओं पर हमला करके खा सकता है, और इससे मानव-तेंदुआ द्वन्द बढ़ सकता है।

तेंदुए को अगर 100 किलोमीटर दूर भी छोड़ा जाएगा तो वह अपने मूल वन में लौटने का प्रयत्न करता है और अगर कोई बाधा न हो तो वापस अपने मूल वन में पहुच भी जाता है। कई बार वापस लौटते के दौरान वह उन गावों में भी पहुंचता है, जहां कभी तेंदुआ नहीं देखा गया। वहां भी मानव-तेंदुआ द्वन्द पैदा हो जाता है। मुंबई के संजय गांधी नेशनल पार्क से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर जुन्नारदेव में चिप लगाकर छोड़ा गया तेंदुआ वापस संजय गांधी नेशनल पार्क पहुंच गया था।

रेडियो कॉलर का नहीं होता है इस्तेमाल

याचिका में कहा गया है कि भारत सरकार ने अपनी गाइडलाइंस में कहा है कि तेंदुए को अपने घर से बहुत ही ज्यादा लगाव रहता है, इसलिए जिस जगह से वह पकड़ा गया है, उस से 10 किलो मीटर के दायरे में ही उसे छोड़ा जाना चाहिए। ऐसा नहीं करने पर मानव के साथ उसका द्वंद्व बढ़ सकता है। भारत सरकार की गाइडलाइन के अनुसार रेडियो कॉलर लगाकर तेंदुए की लगातार मॉनिटरिंग करना अनिवार्य है, मगर छत्तीसगढ़ में तेंदुए को बिना रेडियो कॉलर लगाए और दूसरे वन क्षेत्र का अध्ययन किए बिना कई किलो मीटर दूर छोड़ दिया जाता है। बता दें कि छत्तीसगढ़ में वन विभाग की मानक प्रचालन प्रक्रिया में भी रेडियो कॉलर लगा कर 24 घंटे में छोड़े जाने का प्रावधान है।

याचिका में बताया गया है कि तेंदुआ वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम की अनुसूची 1 के तहत संरक्षित जीव है। बिना मुख्य वन्यजीव संरक्षक अर्थात प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) के आदेश के उसे पकड़ना अपराध की श्रेणी में आता है, जिसके तहत 3 से 7 साल की सजा का प्रावधान है। कानूनी जानकारी होने के बावजूद वनमंडल अधिकारी मुख्य वन्यजीव संरक्षक की बिना अनुमति के पिंजरा लगाते हैं और तेंदुए को पकड़ लेते हैं और मनमाने स्थान पर छोड़ देते हैं।

और स्वस्थ तेंदुए की हो गई मौत

याचिका में हाल के दिनों में मुख्य वन्यजीव संरक्षक के आदेश के बिना पकड़े गए तेन्दुओं का विवरण भी दिया गया है। इसके अनुसार 12 सितंबर 2021 को एक नर तेंदुआ और एक मादा तेंदुआ को कांकेर से पकड़ा गया था। दोनों ही प्रॉब्लम एनिमल नहीं पाए गए। पग मार्ग भी मैच नहीं हुए। कांकेर में दोनों का मेडिकल चेकअप कराया गया, दोनों पूरी तरह स्वस्थ पाए गए। कांकेर के डॉक्टरों ने लिखा कि यह जंगल में छोड़े जा सकते हैं, बावजूद इसके दोनों को जंगल सफारी रायपुर लाया गया। जंगल सफारी में भी मेडिकल जांच में दोनों को स्वस्थ बताया गया तथा वहां के डॉक्टर ने दोनों को जंगल में छोड़ने लायक बताया। मादा को वापस कांकेर भिजवा दिया गया, जहां उसे बिना रेडियो कॉलर लगाए सरोना रेंज के कंपार्टमेंट नंबर 124 में छोड़ा गया। नर को बिना किसी आदेश के रायपुर में रख लिया गया, जहां 17 सितंबर को सेप्टीसीमिया से वह मर गया।

याचिकाकर्ता ने बताया कि समय समय पर मानव-तेंदुआ द्वन्द कम करने के लिए उन्होंने भी कई सुझाव सरकार को दिए। इसमें उन्होंने कहा था कि वन विभाग को आदेशित किया जाए कि भारत सरकार की गाइडलाइंस का शब्दशः पालन किया जाए, भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम की धरा 11 के प्रावधानों का पालन कराया जाए। तेंदुए को वापस छोड़े जाने पर अनिवार्य रूप से रेडियो कॉलर लगाया जाए, मानक प्रचालन प्रक्रिया का पालन कराया जाए।

इन्हें जारी किया गया नोटिस

याचिका में भारत सरकार, छत्तीसगढ़ शासन, प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्यप्राणी, मुख्य वन संरक्षक कांकेर, वनमंडल अधिकारी कांकेर, गरियाबंद, राजनांदगांव को पक्षकार बनाया गया है, जिन्हें हाईकोर्ट द्वारा नोटिस जारी किया गया है।

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