रायपुर। कलिंगा विश्वविद्यालय के कला एवं मानविकी संकाय के अंतर्गत हिन्दी विभाग के तत्वावधान में ‘‘प्रेमचंद का साहित्य और आज का समय” विषय पर संवाद संगोष्ठी एवं कहानी पाठ का आयोजन किया गया। जिसमें मुख्य वक्ता के रुप में हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. आनंद बहादुर उपस्थित थें। संवाद संगोष्ठी के पश्चात उन्होनें विद्यार्थियों से साहित्य लेखन पर चर्चा की और अपनी बहुचर्चित कहानी ‘सीटी’ का वाचन किया।


कार्यक्रम का शुभारंभ कलिंगा विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण प्रकोष्ठ की अधिष्ठाता डॉ. आशा अंभईकर, कला एवं मानविकी संकाय की अधिष्ठाता डॉ. शिल्पी भट्टाचार्य, अभियांत्रिकी संकाय के अधिष्ठाता डॉ. विनय चंद्र झा, इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुनील कुमार, फैशन डिजाइनिंग विभाग की डॉ. स्मिता प्रेमानंद और हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार शुक्ल की उपस्थिति में माँ सरस्वती और मुंशी प्रेमचंद के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित एवं माल्यार्पण करके किया गया।


संवाद संगोष्ठी कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता के रुप में उपस्थित हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. आनंद बहादुर ने कहा कि कथा सम्राट प्रेमचंद अपने पात्र एवं कथानक को आम जनजीवन से उठाते थे। उनकी रचनाओं में किसान और मजदूर मुख्य पात्र होते थे।अपनी रचनाओं के माध्यम से, उन्होंने भारतवर्ष की सभी कुरीतियों एवं समस्याओं पर गम्भीरता से प्रकाश डाला है।उनके द्वारा रचित ‘कफन’ और ‘ठाकुर का कुआँ’ जैसी कहानियों ने हिंदी साहित्य को नई दिशा दी है। जिसके द्वारा दलितों और वंचितों की पीड़ा को समझा जा सकता है। प्रेमचंद का साहित्य कालजयी है और हमारे समाज के लिए सदैव प्रासंगिक रहेगा।


डॉ. आनंद बहादुर ने विद्यार्थियों को प्रेमचंद की रचनाओं के पात्र कफन के ‘घीसू’, पूस की रात के श्हलकूश् और गोदान के ‘होरी’ और ‘गोबर’ का उदाहरण देते हुए बताया कि प्रेमचंद के साहित्य में, जो किसान-मजदूरों की समस्या दिखलायी पड़ती है,वह आज भी कायम है। रंगभूमि के माध्यम से उन्होंने औद्योगिकीकरण और पूंजीवाद के जिस बुरे प्रभाव को दिखलाया था,वे समस्याएँ, आज भी बरकरार है। इस युग में भी गबन का नायक ‘रमाकांत’अपनी पत्नी श्जालपाश् के मोह में पड़़कर बाजार के ऋण जाल में फँसने को अभिशप्त है। प्रेमचंद का साहित्य संघर्ष और संकल्प का साहित्य है। प्रेमचंद के लेखन का यह गुण युवाओं को जरूर सीखना चाहिए।


हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ. अजय शुक्ल ने कहा कि प्रेमचंद आम जनता के सबसे लोकप्रिय कथाकार हैं। उनकी विकास यात्रा आदर्शवाद से यथार्थवाद की ओर है। पंच परमेश्वर जैसी उनकी आरंभिक आदर्शपरक कहानी में ‘न्याय व्यवस्था का मूल्यांकन’और ईदगाह में ‘बाजारवाद का छुपा सच’ आज के समय की जटिल सच्चाई के रुप में दिखलाई पड़ती है। उनके उपन्यास और उनकी कहानियों का दृष्टिकोण आज भी उतना ही सच दिखलाई पड़ता है, जो उनके समय में विद्ममान था। उनकी यथार्थपरक रचनाओं में आने वाले समय की चुनौतियों को, उन्होंने अपनी रचनाओं में पहले ही महसूस कर लिया था।


संवाद संगोष्ठी के पश्चात मुख्य अतिथि ने अपनी बहुचर्चित कहानी श्सीटीश् का कहानी पाठ किया। उसके उपरांत विद्यार्थी-अतिथि संवाद में डॉ. आनंद बहादुर ने लेखन कला, साहित्य का महत्व आदि विषय पर चर्चा करते हुए युवाओं से यह आग्रह किया कि लिखने से पहले पढ़ने की आदत डालें। साहित्य समाज को दिशा देता है लेकिन सोशल मीडिया के इस युग में आज लेखन के साथ चिंतन बहुत कम हो गया है। पढ़ने और लिखने की आदत बहुत जरुरी है। जिससे युवा, अपने नये विचारों के माध्यम से सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है।


उक्त कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय की पत्रकारिता और जनसंचार विभाग की सहा. प्राध्यापक श्रीमती श्रेया द्विवेदी और श्री राजकुमार दास ने किया। धन्यवाद एवं आभार ज्ञापन कला एवं मानविकी संकाय की अधिष्ठाता डॉ. शिल्पी भट्टाचार्य ने किया। उक्त आयोजन में डॉ. वजयभूषण, डॉ. ए. राजशेखर, डॉ.अनिता सामल, डॉ.विजय आनंद, डॉ. श्रद्धा हिरकने, डॉ. विनीता दीवान, डॉ.नम्रता श्रीवास्तव, श्री मुकेश रावत, श्री चंदन सिंह राजपूत, श्री शेखर चौधरी, सुश्री मधुमिता दास, सुश्री मेरिटा जगदल्ला, श्रीमती तुहिना चौबे, सुश्री आकृति देवांगन, सुश्री गीतिका ब्रहमभट्ट, श्री अमन गुप्ता, श्री मोहम्मद यूनुस सहित विश्वविद्यालय के विद्यार्थी और प्राध्यापक उपस्थित थे।

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