मदरसे में बेशक दुनियावि तालीम कम है, शायद इसलिए वो अल्फाज़ कम और मोहब्बत ज्यादा समझते हैं। यह भी गौर करने वाली बात है कि संवाद में उन्होंने छात्रों को इंसानियत, देशप्रेम व नारी सम्मान का पाठ पढ़ाया। संघ प्रमुख ने मदरसाें के आधुनिकीकरण और छात्रों के लिए आधुनिक शिक्षा पर भी जोर दिया। तकरीबन दो घंटे वो वहां रहे। इस दौरान मदरसा "भारत माता की जय' और "वंदेमातरम' के जयकारों से गूंजता रहा।
देश बदलाव से गुजर रहा है, इस बीच बदलाव की एक खबर देश की राजधानी के बाड़ा हिंदूराव के 74 साल पुराने मदरसा ताजबीदूल कुरान पुरानी दिल्ली से भी निकली। जब पहली बार RSS के सर संघचालक मोहन भागवत वहां पहुंचे और बच्चों से पूछ लिया– बड़े होकर क्या बनोगे?
वो भी ऐसे वक्त, जब उत्तर प्रदेश सरकार के मदरसों के सर्वेक्षण को लेकर विवाद बना हुआ है और सरकार की नीयत पर सवाल उठाए जा रहे हैं। दक्षिण में केरल से लेकर आंध्रप्रदेश, तामिलनाडु जैसे राज्य साम्प्रदायिकता की आग में झुलस रहे हैं।
ऐसे वक्त पर RSS के सरसंघचालक मोहन भागवत का मदरसे में पहुंचना क्या भगवा विचार धारा में कहीं ना कहीं बदलाव की शुरुआत है? इस बदलाव के पीछे संघ की सोच क्या है ये तो नहीं मालूम मगर ये तय है कि ”संग” है तो राष्ट्र सुरक्षित है।
मदरसे में बेशक दुनियावि तालीम कम है, शायद इसलिए वो अल्फाज़ कम और मोहब्बत ज्यादा समझते हैं। यह भी गौर करने वाली बात है कि संवाद में उन्होंने छात्रों को इंसानियत, देशप्रेम व नारी सम्मान का पाठ पढ़ाया। संघ प्रमुख ने मदरसाें के आधुनिकीकरण और छात्रों के लिए आधुनिक शिक्षा पर भी जोर दिया। तकरीबन दो घंटे वो वहां रहे। इस दौरान मदरसा “भारत माता की जय’ और “वंदेमातरम’ के जयकारों से गूंजता रहा।
मदरसे में “वंदेमातरम” की इस गूंज में कहीं न कहीं बदलते भारत की तस्वीर दिखाई देती है। हालांकि जमात के कुछ लोगों ने भागवत के मदरसे में आने को राजनीतिक चश्में से देखा, पर इससे क्या देश का भला होने वाला है।
वहां उनके साथ मौजूद आल इंडिया इमाम आर्गनाइजेशन के चीफ इमाम डा. उमेर अहमद इलियासी ने मदरसे में जल्द ही गणित, विज्ञान, अंग्रेजी के साथ संस्कृत और गीता की शिक्षा दिए जाने की बात संघ प्रमुख को बताई। तर्क दिया कि इस्लाम के साथ आधुनिक शिक्षा से यहां छात्र भारत और यहां की संस्कृति को अच्छी तरह से जान-समझ सकेंगे। तो इसमें हर्ज ही क्या, अच्छी तालीम हिन्दुस्तान के हर बच्चों का वाजिब हक है, इससे देश का ही भला होना है।
मदरसा ताजबीदूल कुरान में उस वक्त कई मुस्लिम स्कालर भी उनके साथ थे। संवाद जब आगे बढ़ा तो सभी धर्मों के सम्मान की बात भी हुई। संवाद ”सबसे पहले सभी भारतीय हैं” पर जाकर ठहर गया। यानि बदलाव की बात दोनों ओर से हुई, इसे अच्छा संकेत माना जा सकता है।
भागवत के मदरसे में पहुंचने की पहल का स्वागत करने वाले डा. उमेर अहमद इलियासी का ये कहना कि नजर बदल जाए तो नजिरया भी बदल जाएगा। यानि कहीं न कहीं बात आगे बढ़ती दिखी है। भारत विविधताओं का देश है, देश में सैकड़ों सालों से साथ साथ पली बढ़ी हिन्दू और मुस्लिम संस्कृति देश की दो आंखें हैं, मगर शर्त वही है देश की दोनों आंखों की नजरें एक होनी चाहिए तभी नजर के साथ नजरिया बदलने की बात हो सकती है।
अगर देश की दोनों आंखें देश को अलग-अलग नजरों से देखने लगी तो नजरिया बदलने की बात फिर अटक जाएगी। खैर देर आए दुरुस्त आए पर इतना तो तय है ”संग” हैं तो राष्ट्र सुरक्षित है।
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