हिंदू धर्म में दिवाली के त्योहार का खास महत्व है। धनतेरस का त्योहार 23 अक्टूबर को है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार धनतेरस पर दिया जलाने की परंपरा हैं। इस दिन कुछ खास जगहों पर दिया जलाने से घर में माता लक्ष्मी का वास होता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन धन्वंतरि का जन्म हुआ था। इस दिन आभूषण, बर्तन और वाहन खरीदना बेहद शुभ होता है।

धनतेरस के दिन भगवान गणेश, कुबेर जी और मां लक्ष्मी की पूजा विधि-विधान के साथ की जाती है. कहते हैं कि कुबेर देव की पूजा करने से जीवन सुखमय हो जाता है। इस दिन भगवान धनवंतरी और कुबेर देव की पूजा के साथ मंत्र का जाप करने से वे जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं।

इन उपायों से आपको धन की कमी नहीं होगी –

सुपारी

पूजा-पाठ में सुपारी का प्रयोग किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार सुपारी को ब्रह्मदेव, यमदेव और इंद्रदेव का प्रतीक माना गया है। धनतेरस के दिन पूजा के बाद सुपारी को तिजोरी में रखें। इससे आपके जीवन में कभी धन की कमी नहीं होगी।

उल्लू की तस्वीर

माता लक्ष्मी का वाहन उल्लू नकारात्मक ऊर्जा का नाश करता है। धनतेरस के दिन उल्लू की तस्वीर खरीद कर घर लाएं। फिर इसे शाम को अलमारी पर चिपका दें। उल्लू की फोटो धन स्थान में होने से धन का आगमन बढ़ता है।

बताशे का भोग

हिंदू धर्म में शुभ कार्य में बताशे का भोग लगाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार माता लक्ष्मी को बताशा सबसे प्रिय है। धनतेरस की पूजा में बताशे का भोग लगाएं। ऐसा करने से मां प्रसन्न होती है।

दीपदान

आर्थित स्थिति को मजबूत करने के लिए धनतेरस के दिन 10 रुपये के दीपक खरीद कर लाएं। घर के बाहर दीप माला बनाकर जलाएं। ऐसा करने से आपको कर्ज से मुक्ति मिलेगी।

डिसक्लेमर

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पूजा विधि

धनतेरस पर भगवान धनवंतरि की पूजा करने के लिए उनकी तस्वीर स्थापित करें। फिर आचमनी से जल लेकर तीन बार आचमन करें। तस्वीर पर जल छिड़ककर रोली और अक्षत से टीका करें और वस्त्र या कलावा अर्पित करें।ब सबसे पहले गणपति का मंत्र बोले और उनका ध्यान कर उन्हें प्रणाम करें। क्योंकि गणपति प्रथम पूजनीय हैं और किसी भी पूजा को सफल बनाने के लिए सबसे पहले उनकी पूजा की जाती है।

अब हाथ में फूल और अक्षत लेकर भगवान धनवंतरि का ध्यान करें और प्रणाम करते हुए ये दोनों उन्हें अर्पित कर दें। इसके साथ ही – ‘ओम श्री धनवंतरै नम:’ मंत्र का जप करें।

धनवंतरि भगवान की आरती

ओम जय धनवंतरि देवा, जय धनवंतरि देवा।

जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।।जय धन.।।

तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए।

देवासुर के संकट आकर दूर किए।।जय धन.।।

आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया।

सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।।जय धन.।।

भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी।

आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।।जय धन.।।

तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे।

असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।।जय धन.।।

हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा।

वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का चेरा।।जय धन.।।

धनवंतरिजी की आरती जो कोई जन गावे।

रोग-शोक न आवे, सुख-समृद्धि पावे।।जय धन.।।