श्रीनगर। केंद्र सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर में धारा 370 के हटाए जाने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव कराया जा रहा है। नए राज्य जम्मू-कश्मीर में चुनावी तैयारियां जोरों पर चल रही हैं। हालांकि अभी तारीखों का ऐलान नहीं किया गया है। वहीं जम्मू जिले की उपायुक्त अवनी लवासा की ओर से जारी उस फैसले को वापस ले लिया गया है, जिसमें बाहरी लोगों को भी वोट देने के अधिकार की बात कही गई थी। महबूबा मुफ्ती, गुलाम नबी आजाद और उमर अब्दुल्ला समेत केंद्र शासित प्रदेश के कई बड़े नेताओं ने इस फैसले का विरोध किया था।


डीसी ने बीते दिनों आदेश जारी किया था कि जो लोग जम्मू में एक साल से अधिक समय से रह रहे हैं उन्हें आवासीय प्रमाणपत्र जारी कर दिया जाए जिससे वोटिंग लिस्ट में वो शामिल हो सकें। हालांकि विरोध के बाद जम्मू की उपायुक्त अवनी लवासा ने अपनी उस अधिसूचना को वापस ले लिया है। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी  की प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा था कि इस फैसले से जम्मू-कश्मीर के मतदाता के वोट की कीमत खत्म हो जाएगी। उन्होंने कहा कि यह कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर देश में कहीं भी लागू नहीं होता है।


महबूबा मुफ्ती, गुलाम नबी आजाद ने किया था विरोध
उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा जम्मू-कश्मीर के मूल नागरिकों को मिटाकर बाहरी लोगों को बसाना चाहती है। वहीं, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने भी इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि जो लोग बाहरी हैं उन्हें केंद्र शासित प्रदेश में वोट डालने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। आजाद ने कहा, बाहर के लोगों को केंद्र शासित प्रदेश में अपना वोट नहीं डालना चाहिए। केवल स्थानीय मतदाताओं को ही अनुमति दी जानी चाहिए।


 वे अपने राज्यों में सिस्टम के अनुसार सीलबंद लिफाफे में मतदान कर सकते हैं। जम्मू-कश्मीर में केवल स्थानीय लोग ही मतदान करते हैं। बता दें कि चुनाव आयोग ने अगस्त में जम्मू-कश्मीर में मतदाता सूची में विशेष संशोधन के कार्यक्रम की घोषणा की। इसमें कहा गया कि जो लोग इस क्षेत्र से अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद विधानसभा में मतदाता नहीं थे उनका नाम अब मतदाता सूची में रखा जा सकता है। एक अधिकारी के अनुसार, किसी व्यक्ति को इसके लिए केंद्र शासित प्रदेश का स्थायी निवासी होने की आवश्यकता नहीं है।