धर्मान्तरण

बस्तर। नारायणपुर जिले के ग्राम भाटपाल में एक महिला के शव को दफनाने को लेकर दो पक्षों में जबरदस्त विवाद हुआ। मृत महिला के ईसाई धर्म की होने की वजह से गांव के सर्व आदिवासी समाज ने गांव में जगह देने से मना कर दिया। लगभग 50 घंटे के हंगामे के बाद पुलिस ने शव को कस्टडी में लिया और ईसाई मिशनरी कब्रिस्तान में शव को दफन करवाया।

दरअसल मूल आदिवासी से ईसाई धर्म अपनाने वाली महिला की गुरुवार को मौत हो गई थी। महिला के शव को जब दफनाने की बात आई तो सर्व आदिवासी समाज के लोगों ने महिला का शव गांव में दफनाने नहीं दिया, जिसके बाद आदिवासी समाज और ईसाई मिशनरी पक्ष के बीच हंगामा शुरू हो गया। देखते ही देखते सर्व आदिवासी समाज के लोग और ईसाई समर्थक बड़ी संख्या में भाटपाल गांव पहुंच गए। पुलिस और जिला प्रशासन के लोग पहुंचे और दोनों पक्षों को समझाने की बहुत कोशिश की गई, लेकिन विवाद का कोई हल नहीं निकला।

मूल धर्म में लौटने पर ही…

अगले दिन भी सर्व आदिवासी समाज के कंगाल परगना क्षेत्र के आदिवासी समाज के लोग शव को गांव में नहीं दफनाने पर अड़े रहे। आदिवासियों ने शर्त रखी कि मृतक का परिवार अगर मूल धर्म में वापस आएगा तो पूरे रीति रिवाज के साथ शव को गांव में दफनाने दिया जाएगा, लेकिन ईसाई मिशनरी परिवार ने शर्तों को नहीं माना।

शनिवार को चुपके से शव को दफनाने मृतका के परिजन गड्ढा खोदने लगे तो कुछ लोगों को पता चल गया, जिसके बाद गड्ढे को पाट दिया गया। बाद में ईसाई समर्थक शव को लेकर खेत में दफनाने पहुंचे, यहां भी दोनों पक्षों के बीच भारी हंगामा हुआ। शाम 4 बजे मृतक को भारी हंगामे के बाद पुलिस बल की मौजूदगी में ईसाई कब्रिस्तान में शव को दफनाया गया।

आये दिन हो रही हैं इस तरह की घटनाएं

बस्तर इलाके में मतांतरित/धर्मान्तरित लोगों के शवों को दफ़नाने के दौरान विवाद की घटनाएं आम हो चली हैं। पूर्व में इस तरह की घटनाएं सुनने को नहीं मिलती थीं, मगर जब से हिन्दू संगठन और सर्व आदिवासी समाज सक्रिय हुआ है तब से धर्मान्तरण का विरोध पुरजोर तरीके से करने के साथ ही पूर्व में धर्मान्तरण कर चुके लोगों को आरक्षण का लाभ देने से वंचित करने की मांग उठने लगी। इधर परिजनों की मौत के बाद शवों को दफ़नाने को लेकर समुदायों के बीच विवाद की घटनाएं भी बढ़ गईं हैं।

बस्तर जिले में पूर्व में एक ऐसा ही मामला सामने आया, जिसमें एक आदिवासी परिवार ने कुछ साल पहले ही क्रिश्चियन समुदाय (Christian community) को अपनाया था और इस परिवार में एक महिला सदस्य की मौत हो गई। परिजनों ने मृत महिला का शव क्रिश्चियन विधि विधान के साथ गांव की ही जमीन में दफना दिया।

छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में एक धर्मांतरित परिवार की बुजुर्ग महिला की मौत पर शव दफनाने को लेकर बवाल हो गया। यहां पहले तो मौत को संदिग्ध बताते हुए शव को बाहर निकालकर पोस्टमार्टम कराया गया, जिसके बाद शव को दोबारा गांव में दफनाने पर विवाद खड़ा हो गया। ग्रामीणों के विरोध को देखते हुए शव को दूसरी जगह केशकाल के कब्रिस्तान में दफनाया गया।

गांव में शव दफन करने का विरोध

इसी तरह कोंडागांव के माकड़ी थाना अंतर्गत ग्राम पंचायत बागबेड़ा निवासी मतांतरित युवक की शनिवार को जिला चिकित्सालय में मौत हो गई। गांव में शव दफनाने का ग्रामीणों ने विरोध किया।

इसके बाद स्वजन शव को अंतिम संस्कार करने अपने गांव बागबेड़ा लेकर पहुंचे। जहां अगले दिन सुबह मृतक के शव का अंतिम संस्कार करने की तैयारी कर रहे थे। उसी दौरान गांव के कुछ व्यक्ति पहुंचे और गांव में शव दफन करने का विरोध जताने लगे। परिजन अपनी निजी भूमि पर ईसाई परंपरा के अनुसार शव दफनाने की अपील करते रहे, लेकिन ग्रामीणाें ने नहीं सुना। इससे पूरा दिन निकल गया।
आखिरकार स्वजनों ने शव को अपने निजी भूमि में अंतिम संस्कार करने की अनुमति मांगी।

समुदायों के अलग शमशान घाट हों : नेताम

बस्तर क्षेत्र के वरिष्ठ आदिवासी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविन्द नेताम इस मुद्दे पर खुलकर अपनी राय रखते हैं। TRP न्यूज़ से चर्चा के दौरान वे कहते हैं कि बस्तर में शवों को दफनाने को लेकर होने वाले विवाद का पटाक्षेप करने के लिए शासन को दूसरे समुदाय के शमशान घाट का भी इंतजाम करना चाहिए। उन्होंने बताया कि बस्तर में धर्मान्तरण का मुद्दा पिछले चार-पांच सालों में ही बढ़ा है। यहां कस्बों के बाद अब गावों में भी चर्च बनने लगे हैं, जहां के आदिवासी अब दो समूहों में बंटने लगे हैं। ऐसे में इनके बीच विवाद की घटनाएं भी हो रही हैं।

समाज आपस में सुलझाएं मामला : भारत सिंह

सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष भारत सिंह ने इस मुद्दे पर तटस्थता बरतते हुए कहा कि शवों को दफ़नाने को लेकर जो विवाद हो रहा है, उसका हल समुदायों को आपस में बैठकर आम सहमति से निकालना चाहिए। उन्होंने कहा कि स्थानीय स्तर पर पुलिस ऐसे मामलों को सुलझाने का प्रयास करती है, वहीं समाज के लोगों को भी ऐसे मौके पर बीच का रास्ता निकालना चाहिए।

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