rakh collage

कोरबा। बिजली कारखानों और कोयला खदानों से घिरे कोरबा शहर में नियम विरुद्ध तरीके से कोयले की राख फेंके जाने का प्रकरण NGT और हाईकोर्ट में जारी रहने के बावजूद शहर और आसपास के इलाकों में अब भी जमीन समतल करने के नाम पर राख फेंकी जा रही है। बताया जा रहा है कि ऐसा भूमाफियाओं द्वारा जमीनों पर कब्ज़ा करने की नीयत से करवाया जा रहा है। वहीं इनके इस कृत्य से राख बहकर जीवन दायिनी हसदेव नदी को भी प्रदूषित कर रही है। इस तरह के मामले में शिकायतों के बावजूद पर्यावरण संरक्षण मंडल और जिला प्रशासन की चुप्पी सवालों के घेरे में है।

हसदेव नदी के किनारे बसा है कोरबा शहर। इस जीवनदायिनी नदी और इससे जुड़े छोटे-बड़े नदी-नालों पर आम लोग ही नहीं बल्कि यहां के बिजली कारखाने और कोयला खदान प्रबंधन भी आश्रित हैं। मगर यही कारखाने और खदान यहां के जनजीवन के लिए सालों से मुसीबत बने हुए हैं। बिजली कारखाने से निकलने वाली राख का निपटारा विधिवत ढंग से करने की बजाय यहां केवल जमीन को समतल करने के लिए किया जा रहा है। इस तरह की प्रक्रिया के खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में कई बार वाद दायर किये गए। इसके मद्देनजर हर बार दिशा-निर्देश (GUIDELINE) भी जारी किये गए। मगर कुछ समय तक उनका पालन करने के बाद नियमों का तोड़ निकाल कर फिर वही काम शुरू कर दिया जाता है। वर्तमान में यहां के दर्री इलाके और बालको के एक बड़े भूभाग में हसदेव नदी और ढेंगुर नाले के पास FLY ASH डाली जा रही है। जिसकी शिकायत के बावजूद प्रशासन द्वारा अब तक इसे रोकने की पहल नहीं की गई है।

नदी में बह रही राख, किसी को चिंता नहीं

कोरबा से दर्री की ओर जाने वाले मार्ग पर हसदेव नदी के ऊपर एक नया पुल बनाया गया है। इसके पास ही एक बड़े भूभाग पर जमीन समतल करने के नाम पर बिजली कारखाने से निकाली गई राख (FLY ASH) फेंकी जा रही है। जब भी इस इलाके में बारिश होती है, बड़े पैमाने पर राख बहकर नदी में प्रवाहित हो जाती है। इससे नदी का पानी जहरीला हो रहा है। पूर्व में किसी अमृतपाल सिंह द्वारा इस मामले की शिकायत जनदर्शन में की गई। जिसके बाद पर्यावरण संरक्षण मंडल से एक अमला सच का पता लगाने भी गया। तात्कालिक तौर पर राख फेंके जाने का काम तो रुक गया मगर यह काम पुनः धड़ल्ले से शुरू हो गया है। सच तो ये है कि इस इलाके में कई स्थानों पर राख फेंके जाने का काम चल रहा है।

भूमाफिया की कारस्तानी

दरअसल कोरबा जिले में जमीन की अफरा-तफरी के मामले जितने हैं उतना प्रदेश भर में कहीं नहीं हैं। यहां 70 से अधिक बस्तियां बेजा कब्जे की जमीनों पर बसी हैं। इसके अलावा हर वर्ष यहां सरकारी जमीन पर नई बस्तियां बन जाती हैं। इसके अलावा दूसरी जगह की जमीन को आबादी वाले इलाकों पर सेट करना या कब्ज़ा करके अपने नाम पर करा लेना यहां के दलालों और राजस्व अमले के बाएं हाथ का खेल है। ऐसे लोग ही दर्री क्षेत्र में हसदेव नदी के किनारे की जमीन पर कब्ज़ा करके उसे समतल करने राख पटवा रहे हैं। यह राख पूरे इलाके को प्रदूषित कर रही है, साथ ही हसदेव नदी का पानी भी इससे जहरीला हो रहा है।

ठेका कंपनी की मौज

दरअसल कोरबा जिले की अधिकांश बिजली कारखानों से राख परिवहन का ठेका ब्लैक स्मिथ नामक कंपनी ने ले रखा है। वैसे तो राख (FLY ASH) का शत प्रतिशत उपयोग करने का जिम्मा बिजली कंपनियों के ऊपर है, मगर सच तो यह है कि राख का उपयोग विभिन्न कार्यों में बमुश्किल 10% भी नहीं हो पाता है। शेष राख का निपटारा कंपनियों द्वारा लोलाइंग एरिया (गड्ढों) को समतल करने में किया जा रहा है। इसके लिए भी बाकायदा पर्यावरण संरक्षण मंडल से अनुमति ली जाती है। आलम ये है कि कोई भी शख्स अपनी जमीन समतल कराने के लिए राख का परिवहन ठेका लेने वाली कंपनी ब्लैकस्मिथ से संपर्क करता है, और यह कंपनी ख़ुशी-खुशी अपने ट्रकों में राख भरवाकर संबंधित भूभाग पर गिरवाती है और मशीन लगाकर उसको समतल भी करवाती है। ऐसी सुविधा ब्लैकस्मिथ कंपनी इसलिए देती है क्योंकि उसके ऐसा करने से बिजली कंपनी की राख खप जाती है, वहीं ब्लैकस्मिथ को राख के परिवहन के नाम पर पैसे भी मिल जाते हैं। उधर पर्यावरण संरक्षण मंडल भी इस अवैध कृत्य को देखकर भी आंखे मूंदे हुए रहता है।

जहां देखो वहां बिजली कारखाने की राख

अभी तक तो हम कोरबा शहर के दर्री इलाके की बात कर रहे थे। सच तो ये है कि शहर में जहां भी नजर दौड़ाएं, खुले स्थान पर राख ही राख नजर आती है। दर्री के इस भूभाग से ज्यादा राख तो बालको इलाके में फेंकी जा रही है। यहां लगभग सौ एकड़ भूभाग को लोलाइंग बताकर पर्यावरण संरक्षण मंडल से अनुमति ले ली गई है और बालको प्लांट की राख फेंकी जा रही है।

प्लांटेशन की जमीन पट गई FLY ASH से

बताया जा रहा है कि इस भूभाग पर पूर्व में वन विभाग ने प्लांटेशन किया था। यहां लगाए गए पेड़ों का तो पता नहीं पर राख से ये इलाका पूरी तरह पाट दिया गया है। पूर्व में इस भूभाग का निरीक्षण करने गए पर्यावरण संरक्षण अधिकारी शैलेश पिस्दा ने मीडिया को बताया था कि हमने ब्लैकस्मिथ को अनुमति तो दी है मगर इतने बड़े भूभाग पर राख फेंकने के लिए नहीं दी है। यह जानकारी तो उन्होंने दी मगर वे यहां नियम विरुद्ध फेंकी जा रही राख को बंद नहीं करवा सके हैं।

बताया जा रहा है कि इस भूभाग की लगभग 10 एकड़ जमीन को एक वकील ने अपने कब्जे में कर लिया है, और उसे वह अपने हक़ की जमीन बता रहा है, जबकि इलाके के लोग इसे वन विभाग की जमीन बता रहे हैं।

हाई कोर्ट में चल रहा है प्रकरण

कोरबा जिले में बिजली कंपनियों द्वारा कहीं भी राख फेंके जाने के मामले में पहले NGT में फिर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में वाद दायर किया गया है। इसी के मद्देनजर हाई कोर्ट द्वारा मनोनीत न्याय मित्रों की एक टीम ने शहर और आसपास के इलाकों में फेंकी जा रही राख का अवलोकन करने के लिए कोरबा का दौरा किया। इस दौरान यहां की बदतर स्थिति को न्यायमित्रों ने अपनी आंखो से देखा और अपनी रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत कर दी। बताया जा रहा है कि सितम्बर के महीने में मामले की सुनवाई होनी है।

मनमानी पर चुप है जिला प्रशासन

हाई कोर्ट के इस मामले को संज्ञान में लेने और न्यायमित्रों को कोरबा भेजे जाने से यह उम्मीद की जा रही थी कि बिजली कंपनियों और ठेका कंपनी की इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगेगा, मगर ऐसा कहीं भी नजर नहीं आ रहा है। शहर में अब भी मनमाने तरीके से राख फेंकी जा रही है और सब कुछ जानकर जिला प्रशासन और पर्यावरण संरक्षण मंडल मौन रहकर इस तरह के कृत्य को समर्थन दे रहे हैं।

मंत्री जयसिंह ने भी किया था विरोध

गौरतलब है कि पूर्व में जिले के कद्दावर मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने प्रशासनिक अधिकारियों के साथ ऐसे इलाकों का भ्रमण किया था जहां शासन के लिए उपयोगी जमीनों पर भी राख डंप की जा रही थी। इस दौरान जयसिंह अग्रवाल ने अधिकारियों को जमकर फटकार लगाई और तत्कालीन कलेक्टर को भी चुनौती दे डाली। हालांकि उनके इस प्रयास के बावजूद शहरवासियों को राख की त्रासदी से मुक्ति नहीं मिल पा रही है। फिलहाल चुनावी मौसम शुरू हो गया है और इस दौरान प्रदूषण भी एक मुद्दा होगा, ऐसी उम्मीद की जा रही है।