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किसान मेला में कंपनियों को शामिल करने के लिए इवेंट कंपनी भारी-भरकम किराया लेती है। लेकिन इसमें किसानों को बुलाने और मेले में भीड़ बढ़ाने का खर्च कृषि विभाग उठाता है। कृषि विभाग के निर्देश पर कृषि विश्वविद्यालय आत्मा योजना के फंड से मेले में भीड़ जुटाती है। रायपुर में 23 फरवरी से शुरू हुआ मेला फार्म टेक एशिया के नाम से आयोजित हो रहा है। गुजरात की ब्राह्मनी इवेंट्स एंड एक्जीबिशन इवेंट कंपनी इसका आयोजन कर रही है।

रायपुर। राजधानी के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में शुक्रवार से 4 दिनी किसान मेला की शुरुआत हुई है। किसान मेला फार्म टेक एशिया के नाम से आयोजित किया जा रहा है। इसे गुजरात की ब्राह्मनी इवेंट्स एंड एक्जीबिशन इवेंट कंपनी मैनेज कर रही है। प्रदर्शनी और मेले के लिए कंपनियों को बुलाने से लेकर मेले के ब्रांडिंग की जिम्मेदारी इसी इवेंट कंपनी की है। ये मेले में कंपनियों को मेले की प्रदर्शनी में शामिल होने के लिए उनसे किराया भी लेते हैं। लेकिन इस मेले की सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि कंपनियों से किराया लेने के बाद भी मेले में भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी कृषि विभाग की होती है। विभाग के निर्देश पर कृषि विश्वविद्यालय इसका खर्च उठाता है। जबकि कंपनियों से मोटा किराया लेने वाली इवेंट कंपनी सिर्फ ब्रांडिंग और टेंट का खर्च उठाती हैं। यह कंपनी छत्तीसगढ़ के अलावा राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी मेले का आयोजन करती है।

द रूरल प्रेस ने जब इस मेले के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि रायपुर में बीते दो सालों में यह दूसरी प्रदर्शनी है। इससे पहले मार्च 2022 में यह प्रदर्शनी लगी थी। तब भी भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी कृषि विभाग की ही थी। विभाग आत्मा (एग्रीकल्चर टेक्नॉलजी मैनेजमेंट एजेंसी) योजना के फंड से इस काम में खर्च करता है। जिला स्तरीय कृषि प्रदर्शनी और किसान मेलों का आयोजन आत्मा योजना के तहत करना होता है। इसी वजह से विभाग आत्मा योजना के फंड को निजी कंपनियों के किसान मेला और प्रदर्शनी के आयोजन में खर्च कर देता है। यही कारण है कि विभाग की तरफ से इस तरह के मेले का आयोजन बहुत कम होता है। दूसरी तरफ यह पूरी तरह व्यावसायिक कार्यक्रम है, इसके बाद भी इस मेले के आयोजन का न्यौता विश्वविद्यालय की तरफ से दिया जाता है। इस आयोजन का श्रेय यूनिवर्सिटी लेती है। आमंत्रण कार्ड में किसान मेला और कृषि प्रदर्शनी का नाम देकर इसे अपना बताने की कोशिश होती है, जबकि मेले में पहुंचने पर यह पूरी तरह कमर्शियल होता है। इस वजह से इवेंट कंपनी को ही इस पर पूरा खर्च करना चाहिए। मार्च 2022 में जब यह मेला आयोजित किया गया था, तब यूनिवर्सिटी ने मेला स्थल काे खूबसूरत बनाने के लिए किराए पर लाकर गमले यहां रखे थे। इसके अलावा यूनिवर्सिटी ने अन्य भारी भरकम भी खर्च किए थे।

इवेंट कंपनी कह रही – सारा खर्च हमारा

इस संबंध में जब इवेंट कंपनी से जानकारी मांगी गई तो उन्होंने मेले में सारा खर्च खुद के करने की बात कही। इवेंट कंपनी के एक जिम्मेदार प्रदीप ठाकोर से जब बात की गई तो उन्होंने कहा कि जब मेला ही हमारा है, तो उसका किराया हम ही लेंगे। मेले की ब्रांडिंग में बड़ा खर्च आता है। जब उनसे पूछा गया कि जब आप किराया लेते हैं तो भीड़ जुटाने और किसानों को मेले तक लाने की जिम्मेदारी आपकी होनी चाहिए, तो उन्होंने कुछ नहीं कहा। इस बारे में जब विश्वविद्यालय के जिम्मेदारों से बात की गई तो उन्होंने कहा कि हमारा काम सिर्फ किसानों को मेले तक लाने का है।

50 से ज्यादा स्टॉल, कृषि विवि की भी प्रदर्शनी, बाइक के स्टॉल का मेले में क्या काम?

टीआरपी न्यूज ने जब कृषि मेले जाकर हकीकत जानने की कोशिश की तो पता चला कि यहां 50 से ज्यादा कंपनियों के स्टॉल लगे हैं। यहां कृषि यंत्रों के साथ-साथ कृषि से जुड़े हर तरह के स्टॉल हैं, जिसमें बीज, खाद भी शामिल है। इन सभी से मोटी-मोटी रकम ली गई है। इसके अलावा कृषि विश्वविद्यालय का भी स्टॉल है, लेकिन उन्होंने इसका किराया नहीं दिया। सबसे हैरान करने वाली बात है कि यहां बाइक का भी स्टॉल लगा हुआ है।

आत्मा योजना के मेले का मकसद

आत्मा योजना के तहत लगाए जाने वाला मेला हर जिले में आयोजित किया जाना होता है। हर जिले में किसानों को कृषि की नई तकनीकी एवं योजनाओं की जानकारी देने के लिए कृषि एग्जीबिशन व किसान मेले लगाए जाते हैं। इसे आयोजित करने के लिए चार लाख रुपये तक का खर्च किया जा सकता है। इन मेलों में वैज्ञानिक, विभागीय अधिकारी व जन प्रतिनिधि शामिल होते हैं। साथ ही किसानों को योजनाओं एवं तकनीकी की जानकारी उपलब्ध कराई जाती है। आत्मा योजना के तहत राज्य स्तर पर 50 हजार रुपये, जिला स्तर पर 25 हजार और पंचायत समिति स्तर 10 हजार रुपये की राशि देने का प्रावधान है।