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15 नवंबर 2016 को याचिकाकर्ता राजकुमार मिश्रा ने ईओडब्ल्यू में आरटीआई के तहत आवेदन लगाकर जानकारी मांगी थी कि अधिकारियों, कर्मचारियों और राजनेताओं के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी तीन महीने से अधिक समय से क्यों लंबित है। इस पर ब्यूरो ने 2006 के जीएडी के अधिसूचना को आधार पर बनाकर जानकारी देने से इंकार कर दया था। इसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट की शरण ली। एक बार याचिका खारिज हुई तो याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। वहां दोबारा सुने जानी की बात सुप्रीम कोर्ट ने कही, जिसके बाद हाईकोर्ट में दोबारा सुनवाई में यह फैसला लिया गया है।

रायपुर। बिलासपुर हाईकोर्ट के दो जजों की बेंच ने राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) को सूचना के अधिकार के दायरे में लाने को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। बेंच ने छत्तीसगढ़ सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) को निर्देश दिया है कि ‘7 नवंबर 2006 को जो अधिसूचना जारी कर ईओडब्ल्यू को आरटीआई पर जानकारी प्रदान करने से मुक्त किया गया था, वह त्रुटिपूर्ण है। भ्रष्टाचार और मानव अधिकारों के हनन से संबंधित सूचना देने से इस तरह के संस्था को मुक्त नहीं किया जा सकता। इसलिए इस आदेश के तीन सप्ताह के भीतर छत्तीसगढ़ सामान्य प्रशासन विभाग इस अधिसूचना में आवश्यक संशोधन कर ईओडब्ल्यू को सूचना के अधिकार के दायरे में लाए।’ हाईकोर्ट ने आरटीआई कार्यकर्ता राजकुमार मिश्रा के रिट याचिका पर यह फैसला सुनाया है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने ईओडब्ल्यू को यह निर्देश भी दिया है कि आरटीआई कार्यकर्ता राजकुमार मिश्रा के 15 नवंबर 2016 में प्रस्तुत किए गए सूचना के अधिकार का आवेदन का जवाब आज की स्थिति में इस आदेश के चार सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को प्रदान करें। इस निर्देश के साथ यह याचिका हाईकोर्ट की बेंच ने स्वीकार कर ली है।

राजकुमार मिश्रा को लंबे प्रयासों के बाद यह सफलता मिली है। आरटीआई कार्यकर्ता मिश्रा ने 15 नवंबर 2016 को सूचना का अधिकार पर एक आवेदन प्रस्तुत कर ईओडब्ल्यू से कुछ जानकारियां मांगी थी। ब्यूरो ने इस आधार पर जानकारी देने से इंकार कर दिया कि 7 नवंबर 2006 को राज्य सरकार ने उसे सूचना के अधिकार पर जानकारी प्रदान करने से मुक्त कर दिया है।

इसके बाद जीएडी की इस अधिसूचना को आरटीआई कार्यकर्ता मिश्रा ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। चुनौती में मिश्रा ने दावा किया कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 24 की उपधारा 4 में उल्लेख है कि भ्रष्टाचार और मानव अधिकारों के हनन से संबंधित सूचना देने से किसी भी संस्था को मुक्त नहीं किया जा सकता। छत्तीसगढ़ सरकार की यह संस्था राज्य में भ्रष्टाचार से संबंधित प्रकरणों की ही जांच करती है। इस तरह इस संस्था को सूचना के अधिकार से मुक्त नहीं किया जा सकता। इस पर हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया था। हाईकोर्ट के नोटिस जारी करने पर राज्य सरकार ने इस याचिका का जवाब दिया। अंतिम सुनवाई के समय हाईकोर्ट ने आदेश किया कि याचिकाकर्ता जनहित याचिकाएं प्रस्तुत करने के मामले में नए व्यक्ति नहीं है, इस कारण उनकी यह याचिका निरस्त की जाती है। इस पर राजकुमार मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका प्रस्तुत करने पर कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार कर लिया। साथ ही छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि इस प्रकरण को फिर से सुने। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के आधार पर हाईकोर्ट में इस याचिका की सुनवाई बेंच तीन में की गई। जस्टिस संजय के अग्रवाल और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल ने याचिका को सुना। आदेश को 8 फरवरी 2024 को सुरक्षित कर लिया गया। 7 मार्च 2024 को खुली अदालत में आदेश जारी किया गया।

याचिकाकर्ता ने ईओडब्ल्यू में अभियोजन की मंजूरी लंबित से संबंधित मांगी थी जानकारी

राजकुमार मिश्रा ने ईओडब्ल्यू को एक आवेदन प्रस्तुत किया था, जिसमें उन मामलों के बारे में जानकारी मांगी गई थी जहां अधिकारियों, कर्मचारियों और राजनेताओं के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी तीन महीने से अधिक समय से लंबित थी। जवाब में ईओडब्ल्यू ने छत्तीसगढ़ सरकार के एक अधिसूचना का हवाला देते हुए सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी प्रदान करने से छूट का दावा किया। इस अधिसूचना को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए मिश्रा ने एक याचिका के माध्यम से इसे चुनौती देने की मांग की। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता ने व्यक्तिगत रूप से पेश होकर बार में कहा था कि वह उच्च न्यायालय के नियमों को नहीं जानता है, इसलिए उसे इसका पालन करने की आवश्यकता नहीं है। नतीजतन, उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि नियम किसी भी वादी को छूट नहीं देते हैं। याचिकाकर्ता को मुकदमेबाजी, विशेष रूप से जनहित याचिका में अनुभव होने के कारण, एक जनहित याचिका के माध्यम से राज्य सरकार की अधिसूचना को चुनौती देनी चाहिए थी। यह बयान उच्च न्यायालय की बेंच ने दिया, जिसमें तत्कालीन चीफ जस्टिस अजय कुमार त्रिपाठी और जस्टिस पार्थ प्रतिम साहू शामिल थे। इस आदेश के बाद जनहित याचिका दायर करने की बजाय याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय के आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में अपील की, जिसने उचित प्रक्रिया के बाद 4 दिसंबर, 2023 को एक आदेश जारी किया, जिसमें हाईकोर्ट को याचिका पर फिर से सुनवाई करने और तदनुसार उचित आदेश पारित करने का निर्देश दिया गया।