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बस्तर में नक्सलवाद कमजोर पड़ रहा है। संगठन पर नए लड़ाकों की फ़ौज तैयार करने की चुनौती बन गई है। इस मानसून नक्सल संगठन की असली परीक्षा होगी। इतना ही नहीं अब बस्तर के युवाओं को नक्सली बनाने के लिए लीडर पहले की तरह कन्वेंस नहीं कर पा रहे हैं। TRP के लिए अविनाश प्रसाद की खास रिपोर्ट…

जगदलपुर। बस्तर के बीहड़ों में बीते तीन दशकों से अनवरत जारी नक्सल हिंसा का इतिहास अब करवट लेता दिखाई दे रहा है। किसी समय में अबूझमाड़ की जंगली गहराईयों में प्रशिक्षित हुए नए कामरेड अब सुरक्षाबलों से सीधी लड़ाई लड़ रहे हैं। इस सीधी लड़ाई के परिणाम सुरक्षाबलों के पक्ष मे हैं। बस्तर के जंगलों मे जंगल का नियम ( शक्ति ही ईश्वर ) नियम आज भी यथावत है। अब उस क्षेत्र के बाशिंदों को शक्ति का पलड़ा सुरक्षाबलों यानि लोकतांत्रिक सत्ता की तरफ झुकता दिख रहा है। ये भी एक वजह है कि आत्मसमर्पण करने वाले कामरेड अब कैडर के महत्वपूर्ण दायित्व वाले पाए जा रहे हैं।

नक्सल संगठन के लिए इस बार का मानसून बड़ी चुनौती होगा। नदी नालों के उफान में होने और सुरक्षाबलों की गतिविधियां कम होने से नक्सलियों को अपने संगठन का विस्तार करने का बड़ा मौका मिल जाता है। इसी दौरान नक्सली ग्रामीण क्षेत्रों में अपने संगठन में नए सदस्यों की नियुक्ति का कार्य करते हैं। बड़े इलाके में सुरक्षाबलों के कैंप के खुल जाने के बाद ऐसा कर पाना नक्सलियों के लिए चुनौती है। बस्तर के अंदरूनी इलाकों तक इंटरनेट नेटवर्क की पहुंच बढ़ने से अंदरूनी इलाकों के युवा भी अब बाहरी दुनिया को देखने समझने लगे हैं और ऐसे में नक्सली संगठन के प्रति उनका मोहभंग होने लगा है । आज के युवा को नक्सल संगठन का सदस्य बनाने के लिए उन्हें कन्वेंस कर पाना आसान नहीं है।

नक्सलियों का घटता आधार क्षेत्र

सलवा जुड़ुम आंदोलन के समय नक्सलियों का संगठन तेजी से बढ़ा था। नक्सल संगठन में आदिवासी युवाओं की संघम सदस्य और जन मिलिशिया के पदों पर बड़ी संख्या मे नियुक्तियां हुई थीं। यही युवक युवतियां  सूचना तंत्र के मजबूत आधार हुआ करते थे। गांव में आम ग्रामीणों की तरह ही रहने वाले यह संगठन सदस्य सुरक्षाबलों के लिए गंभीर खतरा थे। मुठभेड़ के दौरान भी मुख्य कैडर के लिए यह सुरक्षा कवच का काम करते थे।

20 नए कैंप नक्सलियों के क्षेत्र में इस वर्ष शुरू हुए

बस्तर आईजी सुंदरराज पी. ने कहा कि एक सुरक्षा कैंप खोलने से 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में नक्सलियों की गतिविधियों में कमी देखी जाती है। इससे क्षेत्र में नक्सल गतिविधियों मे कमी देखी गई है। संगठन मे भर्ती और क्षेत्र में नक्सलियों की बैठकें थमी हैं। बस्तर में पिछले 5 वर्ष में 86 नए सुरक्षा कैंप खोले गए हैं,  जिनमें से 20 नए कैंप इस वर्ष सीधे नक्सलियों के आधार क्षेत्र में खोले गए हैं। प्रदेश सरकार ने संवेदनशील ग्राम के विकास के लिए “नियद नेल्ला नार”  योजना शुरू की है, जो इस लड़ाई में सहायक सिद्ध होगी।

शिकार बनते आम ग्रामीण

नक्सली और सुरक्षाबलों के युद्ध के बीच लंबे समय से पिस्ते आम आदिवासी अब युद्ध के विषय को समझ चुके हैं। सुरक्षाबलों को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से ग्रामीण क्षेत्रों में नक्सलियों द्वारा स्थापित किए गए आईईडी की चपेट में आकर अब तक दर्जनों मौतें हो चुकी हैं। इसी तरह क्रॉस फायरिंग में भी बड़ी संख्या में ग्रामीण मारे गए हैं। किसी भी मुठभेड़ के बाद संबंधित क्षेत्र के आसपास के गांव में या तो पुलिस या तो नक्सली कड़ाई से ग्रामीणों से व्यवहार करते हैं। सुरक्षा बलों की कैंप के  जाने के बाद देखा गया है कि उन इलाकों में और मुठभेड़ के कम होने की वजह से इलाकों में शांति की स्थापना हुई है। ग्रामीण समझ चुके हैं कि यदि मुठभेड़ नहीं होगी तो वह सुरक्षित रहेंगे।

नक्सलियों के लिए बेहद नकारात्मक रहा इस बार का टीसीओसी

टैक्टिकल काउंटर ऑफेंसिव कैंपेन इस बार नक्सली संगठन के लिए बेहद नकारात्मक रहा। दरअसल नक्सली  फरवरी से लेकर जून तक यह ऑपरेशन चलाते रहे हैं। इस दौरान जंगलों में पत्तों के झड़ जाने की वजह से दृष्ठता बढ़ जाती है। ऐसे में नक्सली संगठन सुरक्षा बलों पर हमले करता है। बस्तर के अब तक के बड़े नक्सली हमले इसी दौरान किए गए हैं । इस बार यह नक्सलियों पर उल्टा पड़ा है । सुरक्षा बलों ने आक्रामक रणनीति के तहत सबसे अधिक नक्सलियों को मार गिराया है । इस नक्सल संगठन का मनोबल बुरी तरह से गिरा है।

वर्ष 2024 में सुरक्षाबलों की मुख्य सफलताएं

* 27 मार्च को बीजापुर के चिपुरभट्टी में 6 नक्सली मारे गए।

* 2 अप्रैल बीजापुर के कोरचल्ली -नेद्रा में 13 नक्सली मारे गए।

* 16 अप्रैल कांकेर के कलपर पहाड़ी में 29 नक्सली मारे गए।

* 30 अप्रैल अबूझमाड़ के टेकमेटा मुठभेड़ में 10 नक्सली मारे गए। * 10 में बीजापुर के पीडिया में मुठभेड़ में 12 नक्सली मारे गए।