रायपुर। प्रदेश में नई सरकार के बनने के बाद छत्तीसगढ़ राज्य वक्फ बोर्ड एक बार फिर चर्चा में आ गया है। दरअसल राज्य शासन ने वक्फ बोर्ड में बतौर मेंबर डॉ सलीम राज की नियुक्ति की थी। इसके विरुद्ध दायर याचिका की सुनवाई के बाद मनोनीत सदस्य की नियुक्ति पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। जस्टिस पीपी साहू की सिंगल बेंच ने कहा कि वक्फ बोर्ड में मुतवल्लियों का चुनाव नहीं हुआ है। ऐसे में नियुक्ति पर रोक लगाई जाती है।

इसी महीने हुई थी डॉ राज की नियुक्ति

पूर्व में भाजपा के शासनकाल में हज कमेटी के सदस्य रहे डॉ राज की नियुक्ति की अधिसूचना 5 जुलाई 2024 को जारी की गई थी। जिसके बाद जूना बिलासपुर मस्जिद के मुतवल्ली मोहम्मद इस्राइल ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की है और वक्फ बोर्ड के सदस्य के पद पर डॉ. सलीम राज की नियुक्ति पर आपत्ति की है।

हाई कोर्ट में तर्क दिया गया कि राज्य सरकार वक्फ बोर्ड के सदस्य के रूप में सांसद, विधायक और हाई कोर्ट बार के सदस्य का मनोनयन कर सकती है, लेकिन, डॉ. सलीम राज न तो सांसद हैं और न ही विधायक हैं। वह वकील भी नहीं है, फिर भी उनकी नियुक्ति की गई है।

वक्फ बोर्ड में मुतवल्ली का पद है खाली

याचिका में नियमों का हवाला देते हुए कहा कि गया वक्फ बोर्ड में मुतवल्लियों (किसी मस्जिद कमिटी के अध्यक्ष) का प्रतिनिधित्व जरुरी है। मौजूदा बोर्ड में मुतवल्लियों का प्रतिनिधित्व नहीं है। क्योंकि, मुतवल्लियों का चुनाव नहीं कराया गया है। मुतवल्लियों के प्रतिनिधित्व के बिना बोर्ड की मान्यता नहीं रह जाएगी। ऐसे में अगर डॉ. राज की नियुक्ति कर दी गई है तो मुतवल्ली को सदस्य बनाने के लिए कोई पद रिक्त नहीं रह जायेगा।

याचिकाकर्ता ने वक्फ बोर्ड की धारा 14 का हवाला देते हुए कहा कि इसमें दिए गए प्रविधान और शर्तों के अनुसार बोर्ड में मुतवल्लियों की ओर से एक सदस्य होना अनिवार्य है। मुतवल्लियों का प्रतिनिधित्व आवश्यक है।

डॉ राज ने नियुक्ति को लेकर रखा अपना पक्ष

इस मामले में प्रमुख पक्षकार डा राज के एडवोकेट ने कोर्ट को बताया कि छत्तीसगढ़ में विधानसभा और लोकसभा चुनाव के बाद जो सदस्य चुनाव जीतकर सदन में पहुंचे हैं, उनमें एक भी मुस्लिम सदस्य नहीं हैं। इसके अलावा स्टेट बार कौंसिल भंग है। बार कौंसिल का चुनाव नहीं हो पाया है।

डॉ. राज के अधिवक्ता ने नियमों का हवाला देते हुए कहा कि राज्य में सासंद, विधायक और बार काउंसिल में मुस्लिम सदस्य निर्वाचित ना होने की स्थिति में राज्य सरकार सदस्य के रूप में बोर्ड में किसी भी मुस्लिम व्यक्ति को नामित कर सकती है। इसमें प्राविधान का उल्लंघन संबंधी कोई भी बात नहीं है।

प्रमुख पक्षकार डा राज के अधिवक्ता ने कोर्ट को यह भी बताया कि प्रदेश में ऐसे एक भी मुतवल्ली नहीं है जिनके मस्जिद की वार्षिक आय एक लाख से ज्यादा हो।

दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने वक्फ बोर्ड के सदस्य के रूप में डा राज की नियुक्ति पर रोक लगा दी है

पूर्व सांसद-विधायक को बनाया जा सकता है मेंबर

वक्फ बोर्ड में एक नियम यह भी है कि अगर प्रदेश में वर्तमान में कोई मुस्लिम सांसद-विधायक नहीं है तो पूर्व के मुस्लिम सांसद-विधायक को बतौर सदस्य मनोनीत किया जा सकता है। बता दें कि पिछली बार ही एक पूर्व विधायक इमरान मेमन की वक्फ बोर्ड में बतौर सदस्य नियुक्ति की गई है। वहीं अगर बतौर सांसद सदस्य की नियुक्ति की जानी है, तो छत्तीसगढ़ से राजयसभा सांसद रहीं मोहसिना किदवई को भी मेंबर बनाया जा सकता है, मगर अब तक इस पर कोई विचार ही नहीं किया गया है।

एक और सदस्य की नियुक्ति पर उठे सवाल…

बता दें कि वक्फ बोर्ड की जिन धाराओं के तहत डॉ सलीम राज की नियुक्ति की गई है, उन्हीं धाराओं के तहत रियाज हुसैन की नियुक्ति भी कांग्रेस के शासन काल में 27 अक्टूबर 2022 को की गई थी। राज्य शासन ने इसकी अधिसूचना तो जारी की मगर इसका राजपत्र में प्रकाशन नहीं हुआ है। हालांकि वर्तमान में रियाज हुसैन बतौर सदस्य वक्फ बोर्ड की बैठकों में शामिल होते हैं। वक्फ बोर्ड के नियम कायदों के जानकार बताते हैं कि इनकी नियुक्ति भी नियमानुसार नहीं है।

बहरहाल चर्चा यह भी है कि आखिरकार डॉ सलीम राज की नियुक्ति के बाद परिस्थितियां किस तरह बदलीं जो उनकी नियुक्ति के खिलाफ हाई कोर्ट में मामला दायर करना पड़ा। वरना राजनैतिक नियुक्ति पर लोग ज्यादा सवाल नहीं उठाते हैं। फिलहाल कोर्ट ने डॉ राज की नियुक्ति पर स्टे दे दिया है और शासन सहित संबंधित पक्षों को नोटिस जारी करते हुए अपना पक्ष रखने को कहा है। देखना यह है कि इस मामले में कोर्ट का अंतिम फैसला क्या आता है।