रायपुर। दंतेवाड़ा के जंगलों में एनएमडीसी की कितनी साइट है और कितने स्थानों पर उसे खनन करने और पेड़ काटने की अनुमति है, इसको लेकर आज भी संशय बना हुआ है। आयरन ओर (IRON ORE) के खनन के एवज में NMDC करोड़ों रूपयों की रॉयल्टी खुद ही वसूल रहा है और वन विभाग मौन होकर तमाशा देख रहा है।
दंतेवाड़ा के जंगलों में जिस आयरन ओर का परिवहन हो रहा है, उसकी रॉयल्टी कायदे से वन विभाग को काटनी चाहिए। बता दें कि हर दिन रेलवे के 5 रैक और 200 से ज्यादा ट्रक कच्चा लोहा यहां से परिवहन किया जाता है और इसकी रॉयल्टी शासन को दी जाती है। अब प्रश्न यह खड़ा होता है कि एक रैक में कितने आयरन ओर की लोडिंग हो रही है और NMDC कितनी मात्रा की रॉयल्टी वसूल रहा है, क्या वन विभाग को इसकी जानकारी भी होती है ? इसके लिए बेहतर यह होता कि एनएमडीसी के कर्मचारी की बजाय वन अमला रॉयल्टी की वसूली करता।
हर दिन हजारों टन आयरन ओर का होता है परिवहन
NMDC के बचेली यूनिट से 10 रैक आयरन ओर विशाखापटनम भेजा जाता है। एक रैक में 4 हजार टन यानी 10 रैक के अनुसार प्रतिदिन 40 हजार टन लोहे का परिवहन होता है। वहीं, किरंदुल से भी रोजाना 7-8 रैक आयरन ओर निकलता है। इसी तरह हर दिन बचेली से ढाई-तीन सौ ट्रकें निकलती हैं और इन्हें रायपुर, हैदराबाद समेत दूसरे शहरों में भेजा जाता है। इन सबकी रॉयल्टी वन विभाग को वसूलने का नियम है लेकिन विभाग ने इसका जिम्मा एनएमडीसी प्रबंधन को सौंप रखा है। इसके लिए वन विभाग हर महीने रॉयल्टी बुक एनएमडीसी की दोनों परियोजनाओं को सौंप देता है।
NMDC जो कहे वो सही
अब हर दिन कितना आयरन ओर दंतेवाड़ा से निकल रहा है, इसकी जानकारी वन विभाग को न होकर एनएमडीसी को होती है, और वह जो रिपोर्ट विभाग को सौंपता है, उसे ही फाइनल मानकर विभाग अप्रूवल दे देता है। जबकि आयरन ओर का वजन करते समय भी विभाग की ओर से मॉनिटरिंग का कोई सिस्टम नहीं है, जिससे एनएमडीसी के अलावा और कोई नहीं बता सकता कि जंगलों से कितना आयरन ओर निकाला जा रहा है और उसके पीछे कितनी रॉयल्टी वसूली जा रही है।
हर तरफ CISF का पहरा
NMDC की खदानों के अलावा लोडिंग पॉइंट और सभी नाकों में CISF के जवान तैनात होते हैं। इन स्थानों पर NMDC के अधिकारियों और कर्मियों के अलावा कोई भी अंदर नहीं जा सकता। इन स्थानों पर वन अमला भी कभी नहीं गया है। NMDC द्वारा लगाए गए वे ब्रिज की भी न तो कभी माइनिंग विभाग जांच करता है और न ही वन विभाग का अमला। सच तो यह है कि यहां सारा सिस्टम NMDC के कब्जे में है और वह जो भी जानकारी छत्तीसगढ़ शासन को देता है, उसकी सत्यता की जांच नहीं की जा सकती।
कलेक्टर ने लगाई है अरबों की पेनल्टी
हाल ही में दंतेवाड़ा के किरंदुल और बचेली में होने वाले नियम विरूद्ध लौह अयस्क के खनन और भंडारण के मामले में कलेक्टर ने एनएमडीसी की किरंदुल परियोजना को अरबों रूपए का नोटिस थमाया है। यह रॉयल्टी वसूली में अनियमितता का संकेत देता है। वहीं, इस पूरे मामले में वन विभाग का कहना है कि विभाग में कर्मचारियों के अभाव के चलते रॉयल्टी काटने का जिम्मा एनएमडीसी को सौंप दिया गया है। एनएमडीसी की दोनों परियोजना से हर दिन 40 लाख रूपये से ज्यादा की रॉयल्टी वसूली जा रही है, इसके बावजूद वन विभाग ने अपनी ओर से किसी स्टाफ को इसकी मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी नहीं देते हुए कंपनी को यह जिम्मा सौंप दिया है।
ऑनलाइन सिस्टम बनाने की है जरुरत
छत्तीसगढ़ को सबसे ज्यादा रॉयल्टी SECL की कोयला खदानों से मिलती है। कुछ सालों पहले तक वहां भी इसी तरह खनिज विभाग से रॉयल्टी पर्ची के बुक SECL की परियोजनाओं को दे दिए जाते थे, और SECL प्रबंधन खुद ही रॉयल्टी वसूल कर खनिज विभाग में जमा करता था। लेकिन अब यहां सारा सिस्टम ऑनलाइन हो गया है। SECL से कोयले से लदी गाड़ियों को तौलने वाला वे ब्रिज पूरी तरह ऑनलाइन है। वाहन में लदे कोयले के वजन के हिसाब से रॉयल्टी खनिज विभाग के खाते में ऑनलाइन डाल दी जाती है। ऐसे सिस्टम में न तो SECL को और न ही खनिज विभाग को अपने स्टाफ को लगाने की जरुरत होती है। मगर NMDC में आज भी पुराने ढर्रे पर काम हो रहा है। कायदे से छत्तीसगढ़ सरकार NMDC से निकलने वाले IRON ORE की मॉनिटरिंग और ऑनलाइन सिस्टम का इंतजाम करना चाहिए। जानकर बताते हैं कि ऐसा करने से रॉयल्टी से होने वाली आय में काफी बढ़ोत्तरी हो जाएगी, अर्थात रॉयल्टी की चोरी रोकी जा सकेगी।