रायपुर। राजधानी रायपुर में पश्चिम क्षेत्र के विधायक विकास उपाध्याय ने सिलयारी में एक पेपर मिल के गोदाम में वर्तमान सत्र की किताबें कबाड़ के रूप में पड़े होने की जानकारी मीडिया को दी थी, जिसके बाद किताबों की छपाई कराने वाली पाठ्य पुस्तक निगम में हड़कंप मच गया। अब इस मामले की जांच के आदेश देते हुए IAS अफसर राजेंद्र कटारा के नेतृत्व में टीम गठित की गई है, जो निगम के एमडी हैं। अब लोग इस जांच की निष्पक्षता पर ही सवाल उठाने लगे हैं।
‘कैसे कबाड़ के भाव बेच दी गईं किताबें’
विकास उपाध्याय ने इस मामले की सूचना मिलने के बाद सिलियरी स्थित रियल पेपर मिल फैक्ट्री के गोदाम के अंदर जाकर किताबों का ढेर देखा। इसका अवलोकन करने पर पता चला कि किताबें इसी सत्र की हैं और अच्छी कंडीशन में हैं। उन्होंने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि छत्तीसगढ़ में सत्र शुरू हुए अभी कुछ ही महीने बीते हैं और किताबें छात्रों को पूरी तरह मिल भी नहीं पाई हैं। ऐसे में किताबें बांटने के पहले ही उन्हें कबाड़ में बेच दिया गया है, इन किताबों को उपयोग में लाया जा सकता है, लेकिन इन्हें रद्दी बताकर बेचा जा चुका है।
‘भ्रष्टाचार का ज्वलंत उदहारण’
इस मामले को ऊजागर करते हुए विकास उपध्याय ने कहा कि यह शिक्षा और बच्चों के भविष्य के साथ भारी भ्रष्टाचार का ज्वलंत उदाहरण है। उन्होंने कहा कि यह किताबें सर्व शिक्षा अभियान और छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक निगम द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जो छात्रों को निशुल्क दी जानी थीं। लेकिन इसके स्थान पर इन्हें कबाड़ में फेंक दिया गया है। इससे लाखों-करोड़ों रुपये का राजस्व नुकसान प्रदेश को हुआ है। उन्होंने बड़ा भ्रष्टाचार होने की आशंका व्यक्त करते हुए मामले की जांच की मांग की है।
शिक्षा विभाग ने दिया जांच का आदेश
मौजूदा शिक्षा सत्र की लाखों किताबें कबाड़ में रद्दी के भाव बेचने की खबर प्रकाश में आने के बाद स्कूल शिक्षा विभाग के अवर सचिव आरपी वर्मा ने आईएएस व प्रबंध संचालक, छग पाठ्य पुस्तक निगम, रायपुर राजेंद्र कटारा की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय जांच दल का गठन किया है। जांच रिपोर्ट मिलने के बाद स्कूल शिक्षा विभाग आगे की कार्रवाई करेगा। देखें आदेश :
पापुनि के दो प्रमुख जिम्मेदार हैं जांच दल में
इस मामले की जांच के लिए जारी आदेश पर अगर नजर डालें तो इसमें छग पाठ्य पुस्तक निगम के प्रबंध संचालक राजेन्द्र कटारा और महाप्रबंधक प्रेम प्रकाश शर्मा शामिल किये गए हैं। पाठ्य पुस्तक निगम में अध्यक्ष के बाद यही दो प्रमुख पद हैं जो पूरे निगम का संचालन करते हैं। इनके अलावा डॉ योगेश शिवहरे, अतिरिक्त संचालक, लोक शिक्षण संचालनालय, राकेश पाण्डेय, संभागीय संयुक्त संचालक, शिक्षा संभाग और रायपुर कलेक्टर द्वारा नामांकित अधिकारी जांच दल में रहेंगे। सवाल यह उठता है कि जिस पाठ्य पुस्तक निगम के ऊपर किताबों की गड़बड़ी करने के आरोप लग रहे हैं, उसके अधिकारी मामले की निष्पाक्षता से कैसे जांच करेंगे।
‘मामले में लीपापोती का हो रहा प्रयास’
इस मामले को उजागर करने वाले पूर्व विधायक विकास उपाध्याय ने भी जांच के लिए बनाई गई टीम को लेकर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि वही लोग मामले की जांच करेंगे, जो इस गड़बड़ी में शामिल हैं। जो बुक्स सरकार की संपत्ति हैं और वे कहीं नहीं मिल सकती वे पेपर मिल में कैसे पहुंची। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार इस घोटाले की लीपापोती करने के प्रयास में है।
पूर्व सत्र से ही शुरू हो जाती है तैयारी
बता दें कि पाठ्य पुस्तक निगम किताबें छपवाकर स्कूलों में बच्चों को निःशुल्क आवंटित करता है। इसके लिए लगभग एक सत्र पहले ही तैयारी शुरू कर दी जाती है। किताबों के लिए मटेरियल की खरीदी पाठ्य पुस्तक निगम द्वारा की जाती है और छपने के प्रिंटर्स को दी जाती है। यह सारी प्रक्रिया टेंडर के माध्यम से होती है। वर्तमान सत्र 2024- 25 की जो किताबें कबाड़ में मिली हैं, उनके लिए मटेरियल की खरीदी 2023 के सत्र में की गई होगी। तब पाठ्य पुस्तक निगम में शैलेश नितिन त्रिवेदी अध्यक्ष, इफ्फत आरा प्रबंध संचालक (एमडी) और महाप्रबंधक अरविन्द पांडे थे।
किताबों की मांग और आपूर्ति के ऑडिट की है जरुरत
छत्तीसगढ़ में पाठ्य पुस्तक निगम के ऊपर लगभग हर वर्ष किताबों की छपाई में गड़बड़ी के आरोप लगते रहे हैं। वहीं जिलों में अक्सर इन किताबों को कबाड़ में बेचे जाने की खबरें भी प्रकाश में आती हैं। मगर संभवतः पहली बार ऐसा मामला पकड़ में आया है, जिसमें वर्तमान सत्र की ही किताबें राजधानी में ही सीधे पेपर मिल में बेच दी गई हैं। ऐसा कैसे संभव हुआ इसकी गंभीरता से जांच की जरुरत है।
दरअसल सभी सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों को डाइस कोड आबंटित हैं, और इनसे हर वर्ष कक्षावार बच्चों की संख्या और किताबों की डिमांड का आंकड़ा मंगाया जाता है। जानकर बताते हैं कि स्कूलों द्वारा अमूमन बच्चों का सही आंकड़ा दिया जाता है, मगर पाठ्य पुस्तक निगम के जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा निर्धारित मात्रा से काफी ज्यादा पुस्तकें छपवा ली जाती हैं। ऐसा करके करोड़ों रूपये का प्रकाशकों को अतिरिक्त भुगतान किया जाता है और इसमें कमीशन का खेल हो जाता है। बाद में इन किताबों को बचा हुआ बताकर कबाड़ के भाव में बिकवा दिया जाता है। यह खेल स्कूलों में मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था में की जाने वाली गड़बड़ी की तरह ही होता है। जहां बच्चों की संख्या ज्यादा बताकर अधिक राशन खर्च करना दिखाया जाता है और कमीशनखोरी की जाती है। इसी तरह सरस्वती सायकल योजना में भी आंकड़ों का जमकर खेल होता है।
पाठ्य पुस्तक निगम द्वारा स्कूलों में डिमांड के आधार पर कितनी किताबें हर वर्ष छपवाई जाती हैं, इसका ऑडिट कराया जाये तो सारा सच उजागर हो जायेगा, मगर जिस तरह ताजा मामले की जांच कमेटी में विभाग के जिम्मेदार लोगो को भी शामिल किया गया है, उससे सच कभी सामने आने वाला नहीं है, और मामले को यूं ही गोलमोल करके रिपोर्ट तैयार कर दी जाएगी। कायदे से दूसरे विभाग के प्रमुखों और लेखा से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों को जांच टीम में शामिल किया जाये तो सच उजागर होने की उम्मीद की जा सकती है