0 क्या अब छत्तीसगढ़ के राज्यपाल 9 विधेयकों को लौटाएंगे..?

नयी दिल्ली। केरल सरकार ने उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया है कि राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी को लेकर राज्यपाल के खिलाफ उसकी याचिका को न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ के पास भेजा जाए। दरअसल न्यायमूर्ति पारदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ ने इसी तरह की एक याचिका में द्रमुक नीत तमिलनाडु सरकार को बड़ी राहत प्रदान की है और उन 10 विधेयकों को मंजूरी देने का रास्ता साफ कर दिया, जिन्हें प्रदेश के राज्यपाल आर एन रवि ने राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रख लिया था। इसी कड़ी में अब छत्तीसगढ़ में इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि क्या छत्तीसगढ़ के विधानसभा में पारित 9 विधेयक लौटाए जायेंगे जो राजभवन और राष्ट्रपति भवन में लंबित पड़े हैं।

न्यायमूर्ति पारदीवाला ने क्या दिया है निर्देश..?

न्यायमूर्ति पारदीवाला ने देश के सभी राज्यपालों के लिए राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए एक से तीन महीने की समयसीमा भी निर्धारित की। “राज्यपाल को किसी विधेयक को राज्य विधानसभा में पुनः विचार-विमर्श के बाद उसके समक्ष प्रस्तुत किए जाने पर मंजूरी देनी चाहिए। वह मंजूरी देने से तभी इनकार कर सकते हैं, जब विधेयक अलग हो।”

केरल सरकार के विधेयक भी हैं लंबित

न्यायमूर्ति पारदीवाला द्वारा की गई टिप्पणी के बाद केरल सरकार ने वरिष्ठ अधिवक्ता के. के. वेणुगोपाल के माध्यम से प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ को बताया कि उसकी याचिका, स्वरूप में एक समान होने के कारण, न्यायमूर्ति पारदीवाला की पीठ को भेजी जानी चाहिए।

वेणुगोपाल ने कहा, ‘‘लगभग दो साल हो गए हैं। विधेयक लंबित हैं। न्यायमूर्ति पारदीवाला ने इसी तरह के मुद्दों पर सुनवाई की है और इसे उसी पीठ को सौंपा जा सकता है।’’ अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने इन दलीलों का विरोध किया और कहा कि मुद्दे अलग-अलग हैं तथा इसके अलावा, इस तरह का कोई भी फैसला लेने से पहले न्यायमूर्ति पारदीवाला के फैसले को पढ़ा जाना चाहिए।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि इस तरह का कोई भी फैसला अगली सुनवाई पर दिया जाएगा और याचिका को 13 मई के सप्ताह में सूचीबद्ध कर दिया।

गौरतलब है कि वर्ष 2023 में, शीर्ष अदालत ने केरल के तत्कालीन राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान द्वारा राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को दो साल तक रोक कर रखे जाने पर नाराजगी जताई थी।खान, वर्तमान में बिहार के राज्यपाल हैं।

पिछले साल 26 जुलाई को शीर्ष अदालत ने केरल सरकार की उस याचिका पर विचार करने पर सहमति जताई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी नहीं दी गई।केरल सरकार ने आरोप लगाया कि खान ने कुछ विधेयकों को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास भेजा था और उन्हें अभी तक मंजूरी नहीं मिली है।याचिकाओं पर गौर करते हुए शीर्ष अदालत ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और केरल के राज्यपाल के सचिवों को नोटिस जारी किया।

वेणुगोपाल ने कहा, ‘‘यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।’’

राज्य सरकार ने कहा कि उसकी याचिका राज्यपाल द्वारा सात विधेयकों को राष्ट्रपति के विचारार्थ रखे जाने से संबंधित है, जिन्हें उन्हें (राज्यपाल को) स्वयं मंजूरी देनी थी।

छग के कई विधेयक वर्षों से अटके पड़े हैं

देश के सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के प्रकाश में अब छत्तीसगढ़ समेत अन्य राज्यों के राजभवनों में भी लंबित और रोक कर रखे गए विधेयकों पर भी असर पड़ेगा। राज्यपाल इन्हें मंजूर करें या विधानसभा को वापस लौटाना होगा।

छत्तीसगढ़ में पिछली पांच विधानसभाओं द्वारा पारित कुल 9 विधेयक राजभवन और राष्ट्रपति भवन में लंबित हैं। इनमें रमन सिंह सरकार में गृह मंत्री रहे रामविचार नेताम के द्वारा प्रस्तुत धर्म स्वातंत्र्य विधेयक राष्ट्रपति भवन में लंबित हैं। इसके बाद बघेल सरकार द्वारा पारित शैक्षणिक संस्थाओं और नौकरियों में ओबीसी, अजा आरक्षण विधेयक, केंद्रीय कृषि कानून से संबंधित राज्य के अनुरूप पारित तीन संशोधन विधेयक, कुलपति नियुक्ति में राज्यपाल के अधिकारों में कटौती से संबंधित संशोधन विधेयक और निक्षेपों या हितों से संरक्षण संशोधन (चिटफंड कंपनी) विधेयक शामिल हैं। इनमें सबसे चर्चित और कांग्रेस भाजपा, राजभवन के बीच तनातनी खड़े करने वाले विधेयकों में आरक्षण और कुलाधिपति के अधिकार कटौती के विधेयक रहे हैं। यह आरक्षण विधेयक अनुसुइया उइके के बाद से अब तक रूका है।