नई दिल्ली। इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार मारिया रेस्सा और दिमित्री मुराटोव को देने का ऐलान किया गया है। उन्हें ये पुरस्कार ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए’ उनके प्रयासों के लिए दिया गया। यह पुरस्कार हमेशा किसी उस संगठन या व्यक्ति को दिया जाता है, जिसने राष्ट्रों के बीच भाइचारे और बंधुत्व को बढ़ाने के लिए सर्वश्रेष्ठ काम किया हो। नोबेल कमेटी की मानें तो अभिव्यक्ति की आजादी लोकतंत्र और दुनिया में शांति के लिए बहुत जरूरी है।

पिछले साल यह पुरस्कार विश्व फूड कार्यक्रम को दिया गया था, जिसकी स्थापना 1961 में विश्व भर में भूख से निपटने के लिए तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट आइजनहावर के निर्देश पर किया गया था। इस प्रोग्राम का मकसद दुनिया में हर किसी को खाना मुहैया कराना था। जिसके लिए रोम से काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की इस एजेंसी को वैश्विक स्तर पर भूख से लड़ने और खाद्य सुरक्षा के प्रयासों के लिए यह पुरस्कार दिया गया। इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के तहत एक स्वर्ण पदक और एक करोड़ स्वीडिश क्रोनर (11.4 लाख डॉलर से अधिक राशि) दिये जाते हैं।
द नोबेल प्राइज ने अपने ट्वीट में लिखा- नार्वेजियन नोबेल समिति ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के प्रयासों के लिए मारिया रेसा और दिमित्री मुराटोव को 2021 का नोबेल शांति पुरस्कार देने का फैसला किया है, जो लोकतंत्र और स्थायी शांति के लिए एक पूर्व शर्त है।
जाने कौन हैं मारिया रेस्सा और दिमित्री मुराटोव
नॉर्वे स्थित नोबेल कमेटी की तरफ से कहा गया है कि रेस्सा ने अपने देश फिलीपींस में सत्ता के दुरुपयोग, हिंसा के प्रयोग और तानाशाही को सामने लाने के लिए अभिव्यक्ति की आजादी का सही प्रयोग किया था। साल 2012 में मारिया ने रैप्लर की स्थापना की थी। वो इस डिजिटल मीडिया कंपनी की को-फाउंडर हैं और ये कंपनी इनवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म को आगे बढ़ाती है। दूसरी ओर दिमित्री आंद्रेविच मुराटोव भी एक जर्नलिस्ट हैं। उन्होंने रूस में नोवाजा गाजेटा नाम से एक अखबार की सह-स्थापना की है. कमेटी का कहना है कि यह आज की तारीख में रूस का सबसे स्वतंत्र अखबार है। नोबेल कमेटी के मुताबिक मुराटोव कई दशकों से रूस में बोलने की आजादी की रक्षा करते आ रहे हैं।
वो जो कर रहे हैं वो और भी विशेष उस समय हो जाता है जब उनके ही देश में उनके सामने कई चुनौतीपूर्ण स्थितियां मौजूद हैं. कमेटी ने इस बात पर जोर दिया कि एक मुक्त, आजाद और तथ्यों पर आधारित जर्नलिज्म सत्ता के दुरुपयोग, झूठ और वॉर प्रपोगेंडा को सामने लाने के लिए बहुत जरूरी है. इस साल के उम्मीदवारों में जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग, मीडिया राइट ग्रुप रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) और वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) शामिल थे।
करुणा के साथ समझने
ब्रिटेन में रहने वाले तंजानियाई लेखक अब्दुलरजाक गुरनाह का नाम इस वर्ष के साहित्य के नोबेल पुरस्कार के विजेता के रूप में घोषित किया गया। स्वीडिश एकेडमी ने कहा कि ‘‘उपनिवेशवाद के प्रभावों को बिना समझौता किये और करुणा के साथ समझने’’ में उनके योगदान के लिए पुरस्कार प्रदान किया जा रहा है। यूनिवर्सिटी ऑफ केंट में उत्तर-उपनिवेशकाल के साहित्य के प्रोफेसर के रूप में सेवाएं देते हुए वह हाल ही में सेवानिवृत्त हुए।
10 दिसबंर को दिया जाएगा नोबेल
इस साल यह पुरस्कार किसे मिलेगा, इसे लेकर कई तरह के अनुमान लगाए गए थे. नोबेल कमेटी की तरफ से इस बात का कोई संकेत नहीं दिया गया था कि किस व्यक्ति या समूह को इस सम्मान से नवाजा जाएगा। पिछले एक दशक में इस पुरस्कार से कई राजनयिक, डॉक्टर और राष्ट्रपति सम्मानित हो चुके हैं।
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