राज्य सरकार की खेलगढ़ी योजना में भी सप्लायर्स का खेल
रायपुर। 450 रुपए की फुटबाल 1011 में, 490 की कैरम को 1624 में तो 60 की लूडो को 1355, तो 50 के स्किपिंग रोप 180 रुपए में खरीदा गया। ये आंकड़े हम आपको इस लिए बता रहे हैं ताकि आप को भी पता चले कि छत्तीसगढ़िया के साथ खेलगढ़ियों ने कैसे भ्रष्टाचार किया है। उस पर भी पूरे राज्य के प्रधानपाठकों को घुड़की ये दी जा रही है कि जिस किसी को भी इस आॅर्डर पर सील ठप्पा लगाने में दिक्कत हो वो मंत्री जी से बात कर लें। ऊपर दिए गए आंकड़ों को हम ऐसे ही आपको नहीं बता रहे हैं, ये आंकड़े भी मौजूद दस्तावेज बोल रहे हैं।

क्या है पूरा मामला:

दरअसल राज्य के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र- छात्राओं के सर्वांगीण विकास के लिए प्रदेश सरकार ने प्राइमरी मिडिल स्कूलों में खेलगढ़ी नामक योजना चलाई जा रही है। अब योजना आए और भ्रष्टाचार न हो ऐसा होता है कहीं? लिहाजा इसमें भी जमकर मनमानी की गई। यानि राज्य के रसूखदार खेलगढ़ियों ने एक बार फिर छत्तीसगढ़ियों को ठगा। और इसका विरोध करने वाले प्रधानपाठकों को दबी जुबान से घुड़की दी जा रही है कि अगर सील-ठप्पा लगाने में परेशानी है तो मंत्री जी से बात कर लीजिए। अब भला कौन सा प्रधानपाठक है जो इसके लिए मंत्री जी से बात करने की जुर्रत कर सके? और बस हो गया उन रसूखदारों का काम?  

कैसे हुई खेलगढ़ी में फर्जी लिखा पढ़ी:

खेलगढ़ी योजना में प्राइमरी मिडिल स्कूलों में खरीदी जाने वाली खेल सामग्रियों के खरीदी आदेश की कुछ प्रतियां हमारे भी हाथ लगी हंै। इनमें स्कूलों में आपूर्ति करने वाले स्थानीय(जशपुर) और रायपुर के दोनों फर्म की लिस्ट है । इनमें खास बात ये है कि दोनों फर्मों की रेट लिस्ट में जमीन-आसमान का अंतर है।

क्या है जशपुर और रायपुर के आपूर्तिकर्ता की लिस्ट में अंतर:

खेल सामग्री के लिए जशपुर के फर्म बनर्जी ब्रदर्स और रायपुर के फर्म एसएस स्पोर्ट्स दोनों ने स्कूलों के लिए अलग- अलग क्रय आदेश दिए हैं । रायपुर फर्म द्वारा दिए गए क्रय आदेश में जिस फुटबॉल का दाम 1011 रुपए दिये गए हैं उस फुटबॉल की कीमत जशपुर वाले फर्म ने महज 450 रुपए दर्शाए हैं। रायपुर के फर्म ने कैरम बोर्ड की कीमत 1624 रुपए, जबकि बनर्जी ब्रदर्स जशपुर ने कैरम की कीमत महज 490 रुपए दी है। लूडो की कीमत को रायपुर की फर्म ने 1355रुपए तो जशपुर बनर्जी ब्रदर्स ने महज 60 रुपए दिखाई है। स्किपिंग रोप की कीमत जहां 180 रुपए बताई गई हैं। वहीं बनर्जी ब्रदर्स ने एक स्किपिंग रोप की कीमत 50 रुपए बताई हैं ।  

कैसे हुआ ये फर्जीवाड़ा:

शिक्षा विभाग जशपुर ने 450 रुपए की कीमत वाले फुटबॉल को रिजेक्ट करके 1011 रुपए का फुटबॉल खरीदने का फरमान जारी कर दिया है। 490 रुपए के कैरम बोर्ड की कीमत को दरकिनार करके 1624 रुपए के कैरम बोर्ड की खरीदी की जा रही है। यह बात समझ से परे है कि आखिर महंगा सामान खरीदने की विभाग की क्या मजबूरी है?  

सीधे से सील-ठप्पा लगाओ, या मंत्री जी से बात करो: सप्लायर

सूत्रों की अगर मानें तो राजधानी रायपुर वाले फर्म की ओर से प्रत्येक बीईओ को दी गई प्रिंटेड आर्डर पर्ची में प्रधानपाठकों को सील मुहर लगाने के लिए मंत्री जी के फोन की धमकी भी दी जा रही है। कहा जा रहा है कि जिन प्रधानपाठकों को सील मुहर लगाने में दिक्कत है वो सीधे मंत्री जी से बात करें।  

क्या है खेलगढ़ी योजना:

दरअसल खेल प्रतिभा को विकसित करने के लिए छग शासन द्वारा खेल गढ़ी योजना शुरू की गई थी । इसके तहत प्रत्येक प्राइमरी और मिडिल स्कूलों को खेल सामग्री क्रय करने के लिए 3000-5000 रुपए शासन से दिए गए हैं। इस राशि से प्रधान पाठकों को छात्र -छात्राओं के लिए खेल सामग्री खरीदनी है। प्रधानपाठकों के खाते में आई इन राशियों की कमाई खाने दो बड़े फर्मो ने अपने -अपने सोर्स से पूरे जिले भर का ठेका ले लिया और दोनों ने अपने- अपने अधिकारियों के माध्यम से खेल सामग्री की आॅर्डर पर्ची को प्रिंट करके बीईओ और बीआरसी के माध्यम से स्कूलों में भेजना शुरू कर दिया । जशपुर वाली फर्म ने अपनी आर्डर पर्ची पहले ही बीआरसी के माध्यम से स्कूलों में भिजवा दिया जिस पर सील ठप्पा लगाकर कई ब्लॉक के प्रधान पाठकों ने अपने बीआरसी को सौंप दिए ।

अजीब दुविधा में फंसे प्रधानपाठक:

इस बीच 3 दिन पहले राजधानी रायपुर वाले फर्म ने भी अपने अधिकारी के माध्यम से उसी खेल सामग्री की आर्डर पर्ची को बीईओ के पास भिजवा दिया और बीईओ ने जब स्कूलों में उस आर्डर पर्ची को भिजवाना शुरू किया तो पता चला इन स्कूलों में एक आर्डर पर्ची पहले से आ चुकी है, और प्रधानपाठक नई पर्ची पर सील ठप्पा लगाने में आनाकानी कर रहे है । प्रधान पाठकों की आनाकानी की बात जब बीईओ ने अपने आला अधिकारी को दिया, तो उस अधिकारी ने दो टूक लहजे में कह दिया कि जो प्रधान पाठक आनाकानी करते हैं उन्हें मंत्रीजी से बात करने बोलो । मंत्रीजी से प्रधान पाठकों के फोन पर बात करने का फरमान जब जारी हुआ तो प्रधान पाठकों के होश उड़ गए । अब इनके सामने समस्या ये हैं कि एक ही योजना में दो फर्मो के लिए वे राशि कहाँ से लाएं ? उनके सामने दो ही विकल्प हैं या तो आर्डर पर्ची पर ठप्पा लगाए या मंत्रीजी से बात करें?   Chhattisgarh से जुड़ी Hindi News के अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें  Facebook पर Like करें, Twitter पर Follow करें  और Youtube  पर हमें subscribe करें।