-उचित शर्मा आज पूरे देश में ओपीडी बंद,डॉक्टर्स हड़ताल पर और पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था वेंटीलेटर पर पड़ी है। इसके जिम्मेदार पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों के तेवर को कतई गलत नहीं कहा जा सकता।

हालांकि अस्पतालों में अनेक डॉक्टरों की लापरवाही मरीजों के रिश्तेदारों के अंदर क्षोभ पैदा करता है और वे हिंसक हो जाते हैं। तो डॉक्टरों को भी अपने व्यवहार में परिवर्तन की आवश्यकता है। जो कुछ कोलकाता में हुआ वह भयानक और दुर्भाग्यपूर्ण था।

एक बुजुर्ग व्यक्ति की इलाज के दौरान मृत्यु हो गई। उसके बाद एक समुदाय के लोग ट्रकों पर लदकर आए और वहां आतंक का राज कायम कर लिया। डॉक्टरों की इतनी बेरहमी से पिटाई की गई कि एक के सिर की हड्डी तक टूट गई।

जो पुलिस अस्पताल में ड्यूटी पर थी, वह तो मूकदर्शक बनी ही रही, अस्पताल की ओर से हमले की सूचना दिए जाने पर भी पुलिस वहां नहीं पहुंची। यही नहीं सीसीटीवी में कई हमलावरों के चेहरे दिखने के बावजूद भी उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई भी नहीं।

इससे डॉक्टरों और अस्पताल कर्मचारियों के अंदर उबाल स्वाभाविक था। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चाहतीं तो त्वरित हस्तक्षेप कर स्थिति बिगड़ने से बचा सकतीं थीं।

किंतु उन्होंने उल्टे डॉक्टरों के खिलाफ बयान दिया, उनके आंदोलन को भाजपा एवं माकपा द्वारा प्रायोजित बता दिया। इसके बाद आंदोलन पूरे प्रदेश एवं वहां से बाहर निकलकर देश भर में फैल गया।

प्रदेश के 700 से ज्यादा डॉक्टरों ने इस्तीफा दे दिया। पूरे पश्चिम बंगाल में यह धारणा आम है कि ममता एक विशेष समुदाय के अपराधों पर आंखें मूंदी रहतीं हैं और इसके चलते पुलिस भी उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करती। उनमें से बड़ा वर्ग उनकी पार्टी तृणमूल का नेता, कार्यकर्ता या समर्थक है।

डॉक्टरों का भी यही मानना है। हालांकि डॉक्टरों ने ममता के सामने हड़ताल तोड़ने के लिए जो 6 शर्तें रखीं, उन पर सरकार को तुरत अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए थी।

उसमें डॉक्टरों के खिलाफ बोलने के लिए वो माफी नहीं भी मांगती तो अस्पताल आकर भर्ती घायल डॉक्टरों का हालचाल ले सकतीं थीं, हमलावरों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का कागजात दिखा सकतीं थीं और भविष्य के लिए सुरक्षा देने के आश्वासन में भी कोई समस्या नहीं थी।

किंतु अपने स्वभाव के अनुरूप वो अपनी जिद पर कायम रहीं। हालांकि बाद में वो थोड़ी झुकीं मगर स्वयं अस्पताल जाने की जगह डॉक्टरों को बुलाया। अब इसका अंत जैसा भी हो, डॉक्टरों को भी इसका भान होना चाहिए कि कुछ अपराधियों के कारण उनके काम न करने से लाखों की जान पर बन आती है।

तो वहीं सबसे अहम सवाल ये भी उठता है कि इस हड़ताल की वजह से जिन निर्दोष लोगों की जान जाएगी, उसका जिम्मेदार कौन होगा?

 

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