रायपुर। राजधानी के डॉ भीमराव अंबेडकर अस्पताल में 16 मरीजों को नई धड़कन मिली है। बच्चों के हृदय में जन्मजात छेद (एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट) को बंद करने के लिये एएसडी डिवाइस क्लोजर तथा वेंट्रीकुलर सेप्टल डिफेक्ट डिवाइस क्लोजर प्रोसीजर किये गये। साथ ही दिल की बीमारी एरिथमिया (अतालता) को रेडियोफ्रीक्वेंसीएबलेशन के माध्यम से ठीक किया गया। ये सभी प्रोसीजर एसीआई के विभागाध्यक्ष व कार्डियोलाॅजिस्ट डाॅ. स्मित श्रीवास्तव तथा पीजीआई चंडीगढ़ के कार्डियोलाॅजिस्ट डाॅ. मनोज कुमार रोहित ने मिलकर किये। सभी मरीजों का इलाज आयुष्मान योजना के अंतर्गत तथा स्मार्ट कार्ड के माध्यम से हुआ।

 

क्या है डिवाइस क्लोजर तकनीक

कार्डियोलाॅजिस्ट डाॅ. स्मित श्रीवास्तव के अनुसार, सामान्यत: जन्म के कुछ महीने बाद हृदय की दोनों मुख्य धमनियों के बीच का मार्ग स्वतः बंद हो जाता है। मगर कुछ मामलों में यह मार्ग खुला रह जाता है जिसे सामान्य भाषा में दिल में छेद होना तथा चिकित्सकीय भाषा में एएसडी यानी एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट कहते हैं। इसे डिवाइस क्लोजर टेक्नीक से दिल के छेद को बंद किया जाता है। एएसडी डिवाइस क्लोजर एक छतरीनुमा डिवाइस होता है जिसमें दो छतरियां तथा बीच में एक नलिकानुमा हिस्सा होता है। जिसे कैथलैब द्वारा एक नली के रूप में हृदय में छेद तक पहुंचाया जाता है। जहां वह एक छतरीनुमा आकार में छेद को दोनों ओर से बंद कर देता है। इस उपचार तकनीक की खासियत है कि एएसडी डिवाइस क्लोजर लगाकर बिना चीर-फाड़ के दिल के छेद को बंद किया जाता है। मरीज को दूसरे दिन ही छुट्टी दे सकते हैं। जिसमें जांघ की नस द्वारा बिना चीरे के दिल का छेद बंद कर दिया जाता है और मरीज दूसरे दिन से ही अपने काम पर जा सकता है।

बच्चों में इस समस्या के लक्षण

इस विकार से ग्रस्त बच्चों को तेज चलने, सीढ़ी चढ़ने के दौरान सांस फूलने, चक्कर आने, कमजोरी महसूस होने की समस्या होती है तथा शारीरिक विकास सामान्य बच्चों की अपेक्षा कम होता है।

दिल के निचले कक्ष में असामान्य सम्पर्क है वीएसडी की वजह

वीएसडी यानी वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट एक आम हृदय दोष है, जिसमें दिल के निचले कक्षों (निलय) के बीच असामान्य संपर्क की वजह से छेद हो जाता है। जन्म के कुछ समय बाद ये छेद अपने आप बंद हो जाते हैं लेकिन कई बार ऐसा नहीं होता और छेद बंद करने के लिए ऑपरेशन या कैथेटर पर आधारित प्रक्रिया की जरुरत पड़ती है।

बच्चों में इस समस्या के लक्षण

वेंट्रिकुलर सेप्टल दोष के लक्षणों में कम खाने, वजन ना बढ़ने, और तेजी से सांस लेने के लक्षण शामिल हो सकते हैं।

 

संगीत के ताल की तरह धड़कनों की भी होती है ताल

जिस तरह से संगीत में लय व ताल (रिदम) होते हैं। ठीक उसी तरह से हृदय की धड़कन में भी एक ताल होती है। कभी किसी बीमारी की वजह से आपके हृदय की ताल बिगड़ जाती है तो उसे अतालता यानी ताल का बेताल होना अर्थात् एरिथमिया या एरिदमिया कहते हैं। चिकित्सकीय भाषा में कहें तो एरिथमिया हृदयगति की दर से संबंधित समस्या है। इसका अर्थ है कि हृदय की धड़कन बहुत तेज हो जाती है या बहुत धीमी या अनियमित पैटर्न से धड़कता है। जब हृदयगति सामान्य से ज्यादा तेज होती है तो इसे टैकीकार्डिया/द्रुतनाड़ी कहते हैं। जब हृदयगति सामान्य से बहुत धीमी होती है तो इसे ब्रेडीकार्डिया कहते हैं। सामान्य हृदयगति वापस पाने के लिए उपचारों में दवाएं, इलेक्ट्रोफिजियोलाॅजी स्टडी, प्रत्यारोपण योग्य कार्डियोवर्टर डिफिब्रिलेटर(आईसीडी) या पेसमेकर या सर्जरी शामिल हैं।

एरिथमिया के लक्षण

तेज और धीमी हृदयगति, धड़कन रुकना, चक्कर आना, सीने में दर्द, सांस की तकलीफ, पसीना आना इत्यादि।

एरिथमिया का उपचार आरएफए विधि से

रेडियोफ्रीक्वेंसी एबलेशन एक प्रक्रिया है जिसका उपयोग एरिथमिया के उपचार के लिए किया जाता है। इलेक्ट्रोफिजियोलाॅजी अध्ययन की सहायता से दाहिने पैर के नसों के माध्यम से हृदय तक पहुंच कर उच्च ऊर्चा के द्वारा असामान्य कोशिकाओं को नष्ट करके हृदय के ताल (रिदम) को ठीक किया जाता है। इलेक्ट्रोफिजियोलाॅजी में डॉक्टर दिल की विद्युत प्रणाली का अध्ययन और असामान्य क्षेत्र का पता लगा लेते हैं। दूसरे शब्दों में मरीजों में यह दिल की विद्युत प्रणाली का एक शॉर्ट सर्किट है जिसे रेडियोफ्रीक्वेंसी ऊर्जा का उपयोग करते हुए जलाया जाता है।

इन मरीजों का हुआ उपचार

दुर्ग से आयी स्निग्धा त्रिपाठी, कबीरधाम से आये घनश्याम चौधरी , भिलाई के थामेश्वर , मुंगेली के मुकेश बंजारे, बिलासपुर के धनंजय सरकार, कोरिया के राजेश सोनी, जशपुर की नूरजहां, रायपुर की दानेश्वरी साहू, चांपा के कृष्णा कश्यप तथा अन्य।

 

 

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