टीआरपी डेस्क। महाराष्ट्र की सियासत में मंगलवार को कर्नाटक दोहराया गया। डेढ़ साल पहले

कर्नाटक में बीएएस येदियुरप्पा ने भी फ्लोर टेस्ट से पहले कुछ इसी अंदाज में इस्तीफा दिया था,
जैसे आज देवेंद्र फडणवीस ने दिया।
इसके अलावा 2017 में गुजरात में राज्यसभा की 3 सीटों के चुनाव में भी अमित शाह का प्लान
नाकाम रहा था।
बता दें कि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एनसीपी नेता अजित पवार के समर्थन से
अचानक शनिवार सुबह शपथ ले ली तो कहा गया कि इसके पीछे शाह का प्लान था। सोशल
मीडिया पर #चाणक्य ट्रेंड करने लगा था।
अमित शाह की तस्वीरों के मीम्स बनने लगे, ‘जहां जीतते हैं, वहां सरकार बनाता हूं। जहां नहीं
जीतते, वहां डेफिनेटली बनाता हूं।’
हालांकि 3 दिन के भीतर बाजी पलट गई और मंगलवार दोपहर बाद फडणवीस को इस्तीफा देने
के लिए मजबूर होना पड़ा। दरअसल, एनसीपी चीफ शरद पवार के भतीजे अजित पवार को
समझने में बीजेपी चीफ अमित शाह और पूरी बीजेपी फेल हो गई।
अमित शाह के केंद्रीय राजनीति में आने के बाद बीजेपी को कई सफलताएं मिली हैं पर कब-कब
उनका सियासी प्लान सफल नहीं हुआ, आइए समझते हैं…
कर्नाटक में येदियुरप्पा को देना पड़ा था इस्तीफा :
करीब डेढ़ साल पहले मई 2018 में कर्नाटक में बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा ने कर्नाटक में फ्लोर
टेस्ट से ऐन पहले विधानसभा में अपने भाषण के दौरान इस्तीफे का ऐलान किया था।
दरअसल, 222 सीटों वाली कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में बीजेपी को 104 सीटें मिली थीं जो
बहुमत के लिए जरूरी 112 के आंकड़े से 8 कम थीं। जेडीएस के 37 और कांग्रेस के 78 विधायक
जीतकर आए। 3 सीटें अन्य के खाते में गई थीं।
बीजेपी इस उम्मीद में थी कि कांग्रेस और जेडीएस के कुछ विधायकों को अपने पाले में लाकर
उनसे इस्तीफा दिलवाकर वह सरकार बनाने में कामयाब हो जाएगी।
सिंगल लार्जेस्ट पार्टी होने के नाते राज्यपाल वजुभाई वाला ने बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता
दे दिया। 17 मई 2018 को येदियुरप्पा ने सीएम पद की शपथ ली।
राज्यपाल ने येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने के लिए 15 दिनों का वक्त दिया लेकिन कांग्रेस
और जेडीएस उनके इस फैसले के खिलाफ रात में ही सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं। देर रात तक
सुनवाई चली और उसके अगले दिन भी जारी रही।
सुप्रीम कोर्ट ने येदियुरप्पा को उसी दिन बहुमत साबित करने का निर्देश दिया। सबकी नजरें विधानसभा
पर थी लेकिन फ्लोर टेस्ट से पहले ही येदियुरप्पा ने विधानसभा में अपने भाषण के दौरान ही इस्तीफे
का ऐलान कर दिया।
गुजरात में अहमद पटेल का चुनाव :
राज्यसभा चुनाव 2017 में गुजरात की तीन सीटों में से दो पर बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह और
केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी जीतीं लेकिन तीसरी सीट पर कांग्रेस के अहमद पटेल विजयी हुए।
बीजेपी कुछ कांग्रेस विधायकों को अपने पाले में खींचने में कामयाब हो गई और आखिर तक सस्पेंस
बना रहा कि अहमद पटेल और बीजेपी के बलवंत राजपूत में से कौन जीतेगा।
बीजेपी अपने प्लान में तकरीबन कामयाब हो चुकी थी लेकिन एक तकनीकी पेच ने उसका बना
बनाया खेल बिगाड़ दिया। दरअसल कांग्रेस के 2 बागी विधायकों के वोट को लेकर विवाद खड़ा हो
गया। दोनों ने अपना वोट डालने के बाद बीजेपी के एक नेता को बैलट दिखा दिया था कि उन्होंने
किसको वोट दिया। इस पर कांग्रेस ने हंगामा कर दिया।
कांग्रेस ने कहा कि दोनों ने वोट की गोपनीयता का उल्लंघन किया है। कांग्रेस चुनाव आयोग पहुंच गई।
वोटों की गिनती रुक गई। आधी रात दोनों दलों के नेता चुनाव आयोग पहुंच गए। आखिर में चुनाव
आयोग ने दोनों विधायकों के वोट को खारिज कर दिया और अहमद पटेल चुनाव जीत गए।
आपको याद होगा राजपूत कांग्रेस से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हुए थे। निर्वाचन आयोग द्वारा
कांग्रेस के बागी विधायकों भोला भाई गोहिल और राघव भाई पटेल के मतों को रद्द किए जाने के बाद
कांग्रेस नेता विजयी हुए।
अहमद पटेल के निर्वाचित होने के तुरंत बाद राजपूत ने हाई कोर्ट में चुनाव याचिका दायर कर दो विद्रोही
विधायकों के मत निरस्त करने के फैसले को चुनौती दी। राजपूत की दलील थी कि यदि ये दोनों मतों की
गणना होती तो उन्होंने अहमद पटेल को पराजित कर दिया होता।
इसे बीजेपी के लिए झटका माना गया। अमित शाह को जैसे बीजेपी का सियासी चाणक्य कहा जाता है,
वैसा ही कद सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल का है।
उत्तराखंड में भी फेल हुआ था बीजेपी का दांव :
उत्तराखंड में भी 2016 में बीजेपी को मात खानी पड़ी थी। दरअसल, सूबे में हरीश रावत के नेतृत्व में कांग्रेस
की सरकार थी। कांग्रेस के कुल 35 विधायकों में से 9 विधायकों ने रावत के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद
कर दिया, जिसके बाद सरकार के भविष्य पर प्रश्न चिह्न लग गया। बागी विधायकों को मनाने की कोशिशें
होती रहीं।
इसी बीच राज्यपाल ने केंद्र को रिपोर्ट भेज दी कि सूबे में संवैधानिक तंत्र नाकाम हो गया है, लिहाजा राष्ट्रपति
शासन लगाया जाए। इसके बाद नरेंद्र मोदी कैबिनेट ने राष्ट्रपति शासन लगाने संबंधी सिफारिश तत्कालीन
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास भेज दिया।
राष्ट्रपति मुखर्जी ने सिफारिश मान ली और सूबे में राष्ट्रपति शासन लग गया। कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र की हत्या
करार दिया। पार्टी ने हाई कोर्ट में राष्ट्रपति शासन को चुनौती दी। हाई कोर्ट ने राष्ट्रपति शासन को अवैध
ठहरा दिया। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट ने हरीश रावत सरकार को विधानसभा में बहुमत साबित करने का आदेश दिया। आखिरकार
हरीश रावत सरकार ने बहुमत साबित कर दिया। कुल वैध 61 मतों में से 33 विधायकों के वोट हरीश रावत
सरकार के पक्ष में आए। इस तरह सूबे में हरीश रावत सरकार बहाल हो गई और राष्ट्रपति शासन हट गया।
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