कहीं बयानों में ही न उलझ कर रह जाए बिटियां का सपना, पढ़-लिख कर भविष्य है गढ़ना…
कहीं बयानों में ही न उलझ कर रह जाए बिटियां का सपना, पढ़-लिख कर भविष्य है गढ़ना…

नंदनी सिंह नेशनल डेस्क। बुधवार को कैबिनेट में लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने के फैसले को मंजूरी दे दी गई है। जिसके बाद से देश भर में इस फैसले को लेकर नेताओं के बीच बयानबाजी चल रही है। और वहीँ इस फैसले से आम लोगों में भी हलचल मची हुई है। आज जनता में एक तरफ ऐसे लोग हैं जिन्होंने इस फैसले को स्वीकार कर इसकी तारीफ की है, तो वहीँ दूसरी तरफ ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने इस फैसले की आलोचना की है। लेकिन जनता के एक बड़े तबके ने केंद्र सरकार के इस फैसले को सही फैसला बताया है।

क्योंकि यह युवाओं से जुड़ा मुद्दा हैं इसलिए टीआरपी की टीम ने इस विषय पर कुछ युवाओं की राय जानने कि कोशिश की।

समीर : मेरे ख्याल में केंद्र सरकार द्वारा लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने का फैसला कुछ मायनों में सही भी है और कुछ मायनों में गलत भी। शादी की उम्र बढ़ जाने से लड़कियों में ज्यादा पढ़ने की संभावना बढ़ेगी। इसके अलावा 21 वर्ष के बाद मां बनने से, जच्चा-बच्चा दोनों की सेहत पर एक सकारात्मक असर पड़ेगा। लेकिन केवल फैसला कर देना ही काफी नहीं होगा। जरूरी है कि इसे अमल में भी लाई जाए। लड़कियों की शादी की उम्र सीमा जब 18 वर्ष थी, तब भी बाल उम्र में शादियां होती रही है, और यह सिलसिला वर्तमान में भी जारी है। भारत का एक बड़ा तबका गरीब है। इसी बेबसी के चलते लड़कियों की शादी समय से पहले कर दी जाती है। हालांकि पहले के मुकाबले जागरूकता और रोक-टोक के चलते इसमें थोड़ी कमी जरूर आई है। लेकिन सरकार के लिए जरूरी है कि वह गरीब बच्चों को 21 साल तक पढ़ने और सीखने के लायक संभावनाएं मुहैया कराए।

रविंद्र सिंह बिष्ट : मैंने खबर पढ़ी कि सरकार ने विवाह की न्यूनतम आयु 18 से बढ़ाकर 21 कर दी है। मुझे लगता है कि सरकारों को लोगों के निजी जीवन में अनावश्यक दखल देना बंद करना चाहिए। मुझे लगता है सरकार केवल युवाओं को इन सब बहसो में व्यस्त करना चाहती है और जो मूल समस्याएं है जैसे बेरोजगारी, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क और जाति के नाम पे आरक्षण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों से युवाओं को भटकाने का प्रयास कर रही है। लेकिन हम ये होने नही देंगे और अपने स्तर पर इसका हम विरोध करते है। जब 18 वर्ष की युवती ये चयन कर सकती है कि कौन सी पार्टी का नेता उसके क्षेत्र का विकास कर सकता है तो क्या वो अपने जीवन साथी का चयन नहीं कर सकती। इस तरह से तो आप कल प्रत्येक घर की रसोई में भी दखल देंगे और कहेंगे कि सोमवार को दाल चावल बनेगा और मंगलवार को सिर्फ रोटी, बुधवार को सिर्फ सलाद खाकर ही आपको पूरा दिन निर्वाह करना होगा। इस लोकतान्त्रिक देश में इस तरह के फैसले सच में मन में संदेह उत्पन्न करते है कि वाकई भारत देश एक लोकतान्त्रिक देश है क्या ?

झषांक नायक : सरकार का यह एक ऐतिहासिक फैसला है। इस फैसले से लड़कियों को पढ़ाई करने का ज्यादा समय मिलेगा। जिससे उन्हें अपना भविष्य बनाने में मदद मिलेगी। क्योंकि वर्त्तमान में 18+ होते ही लड़कियों पर की शादी का दबाव बनाया जाता है। और शादी करा दी जाती है।

अम्बिका मिश्रा : देश में बेटियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल करने का प्रस्ताव को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। टास्क फोर्स का कहना था कि पहले बच्चे को जन्म देते समय बेटियों की उम्र 21 साल होनी चाहिए। देश की अधिकतर महिलाएं इस फैसले के पक्ष में है, और उनका मानना है कि 18 वर्ष की उम्र में शादी कर देने से लड़कियों में परिपक्वता नहीं आ पाती थी। साथ ही साथ अब लड़कियों को अपने भविष्य के विषय में सोचने का भी एक मौका मिल रहा है।

इस विषय में जब कानून विशेषज्ञों ने कहा कि 18 साल की उम्र में लड़कियों को मत देने का अधिकार प्राप्त हो जाता है, तो से स्पष्ट है कि लड़कियां बौद्धिक रूप से परिपक्व हो चुकी होती है। साथ ही साथ शारीरिक रूप से भी परिपक्व हो चुकी होती हैं ,ताकि वह शादी कर सके। उन्होंने कहा कि जब 18 साल में वोट देने का अधिकार है तो 18 साल की उम्र में अपने जीवन साथी चुनने का अधिकार उन्हें मिलना चाहिए। इस फैसले से ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियां प्रभावित होंगी और कहीं ना कहीं अपराध को भी बढ़ावा मिलेगा।

इस विषय पर महिलाओं ने कहा कि 21 साल शादी की उम्र में लड़कियों को अपने बारे में सोचने और पढ़ाई करने का समय मिल जाता है। उन पर विवाह का किसी भी पारिवारिक दबाव नहीं होता। लड़कियों के हित में सरकार द्वारा लिए गए फैसले का महिला वर्ग में समर्थन किया। अभिभावक वर्ग को भी राहत मिलेगी, उन्होंने कहा कि अब अभिभावक अपने बच्चों पर शादी का दबाव नहीं डाल पाएंगे तब तक जब तक कि उनकी बच्चियां बौद्धिक और शारीरिक रूप से सक्षम ना हो जाए और साथ ही साथ बच्चियों की शिक्षा भी पूरी हो पाएगी।

पहले जब विवाह की उम्र 18 वर्ष होती थी, तो अभिभावकों की चिंता बढ़ जाती थी। अब अभिभावकों पर पारिवारिक और सामाजिक दबाव भी नहीं रहेगा कि 18 वर्ष में लड़की की शादी करनी है। अब हम ग्रामीण परिवेश से जुड़े लोगों की चिंता बढ़ा दी है। ग्रामीण परिवेश के लोग शायद ही इस फैसले से ग्रामीण परिवेश खुश होगा, क्योंकि उन पर लकड़ियों की सुरक्षा को लेकर चिंता बानी रहती है और उन पर लड़कियों के विवाह का सामाजिक और पारिवारिक दबाव लगातार बना रहता है।

चांदनी सिंह : मेरे ख्याल से केंद्र सरकार का, लड़कियों की शादी की उम्र 18 से 21 साल करने का निर्णय सही है। 18 साल के मुकाबले लड़कियां 21 साल में थोड़ा ज्यादा परिपक्व हो जाएंगी और सही गलत या शादी जैसी चीजों को और अच्छे तरीके से समझ पाएंगी। लड़कियों को और आगे पढ़ने का और अपने पैरों पर खड़े होने का और अधिक मौका मिलेगा। और सबसे अहम बात बाल विवाह जो कि आज भी चलन में है। उसको खत्म किया जा सकता है। केंद्र सरकार ने जो फैसला लिया है उस पर अटल रहना चाहिए। कुछ लोगों को इस फैसले को अपनाने में दिक्कत भी हो सकती है लेकिन अगर वो इस बारे में सोचे तो वो अमल भी कर सकते है।

सुयश: मेरे विचार में ये एक बहुत ही अच्छा फैसला लिया है सरकार द्वारा। भारत जैसे देश में जहां वैसी लड़कियों की शादी को घर वाले एक बोझ के तार देखते हैं या इसी कारण से उनकी शिक्षा पूरी नहीं होती है या उनकी शादी हो जाती है … अगर उन्हें ग्रेजुएशन ये पोस्ट ग्रेजुएशन पूरी करनी है तो उसे बहुत ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है। लडकियों को जीतना ज्यादा टाइम उनके एजुकेशन या सेल्फ डेवलपमेंट में मिलेगा उतना ही वो खुद को सफल बना पाएंगे या अपने अंदर की क्वालिटी और कैलिबर को जान पाएंगे जिससे उन्हें आगे किस फील्ड में जाना है समझ पाएंगे।

पश्चिम बंगाल में बाल विवाह के ज्यादा मामले,

  • देश में बाल विवाह को रोकने के लिए 2006 में ‘बाल विवाह रोकथाम’ कानून लाया गया था।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में (41.6), बिहार (40.8) और त्रिपुरा (40.1) में बाल विवाह के मामले ज्यादा देखे गए हैं।
  • इसके साथ ही देश की राजधानी दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में 11.4 और शहरी क्षेत्र में 9.8 फीसदी तक बाल विवाह के मामले सामने आते है।
  • इस सर्वेक्षण में शामिल 20 से 24 वर्ष की महिलाओं में से अधिकतर का विवाह 18 वर्ष की उम्र से पहले हो गया था।
  • पिछले सालों के मुकाबले बाल विवाह के आंकड़ों में कमी देखी गई है।
  • साल 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के शहरी इलाके में 9.9 और ग्रामीण क्षेत्रों में 14.3 फीसदी मामले दर्ज किए गए।

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