टीआरपी डेस्क। देश और दुनिया में कोरोनावायरस के लगातार बढ़ते संकट के बीच कंपनियां इसका टीका बनाने की जी तोड़ कोशिश में लगी है। भारत में इस वक्त जहां सीरम इंस्टीट्यूट की कोवीशील्ड, भारत बायोटेक की कोवैक्सिन और रूस की स्पुतनिक-V का इस्तेमाल किया जा रहा हैं। वहीं भारत की अग्रणी दवा कंपनी जायडस कैडिला इसी हफ्ते कोरोना वैक्सीन जायकोव-डी को इमरजेंसी अप्रूवल के लिए सेंट्रल ड्रग्स रेगुलेटर को अप्लाई कर सकती है।

अगर इसे मंजूरी मिलती है तो यह दुनिया की पहली DNA बेस्ड वैक्सीन होगी। इसके साथ ही देश में उपलब्ध वैक्सीन की संख्या 4 हो जाएगी। जानकारी अनुसार ‘‘तीसरे चरण के परीक्षण के आंकड़ों का विश्लेषण करीब-करीब तैयार है। कंपनी ने सरकार को सूचित किया है कि वह अगले सप्ताह अपने कोविड-रोधी टीके के आपात इस्तेमाल लाइसेंस के लिए आवेदन कर सकती है।’’
जायकोव-डी वैक्सीन के कितने डोज
भारत में अभी लगाई जा रही तीनों वैक्सीन डबल डोज वैक्सीन हैं। वहीं जॉनसन एंड जॉनसन और स्पुतनिक लाइट जैसी सिंगल डोज वैक्सीन भी हैं। जो आने वाले महीनों में भारत में आ सकती है, लेकिन जायकोव-डी वैक्सीन इन सभी से अलग है। इस भारतीय वैक्सीन के एक या दो नहीं बल्कि तीन डोज लगाए जाएंगे।
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जायकोव-डी का दूसरा डोज पहले डोज के 28 दिन बाद लगाया जाएगा। वहीं, तीसरा डोज पहले डोज के 56 दिन बाद लगेगा। यानी, हर डोज में 4-4 हफ्ते का अंतर रहेगा। फेज-1 और फेज-2 के ट्रायल के दौरान तीन डोज लगाने पर यह वैक्सीन ज्यादा समय तक इम्यूनिटी को स्ट्रॉन्ग रखती है। हालांकि कैडिला इसके दो डोज की भी टेस्टिंग कर रही है। इससे जुड़े नतीजे भी जल्द आ सकते हैं।
कैसे काम करती है, जायकोव-डी ?
जायकोव-डी एक DNA-प्लाज्मिड वैक्सीन है। यह वैक्सीन शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए जेनेटिक मटेरियल का इस्तेमाल करती है। जिस तरह अमेरिका समेत कई देशों में लग रही फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए mRNA का इस्तेमाल करती हैं। उसी तरह यह प्लाज्मिड-DNA का इस्तेमाल करती है।
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mRNA को मैसेंजर RNA भी कह सकते हैं। जो शरीर में जाकर कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने का मैसेज देती है। वहीं प्लाज्मिड इंसानी कोशिकाओं में मौजूद एक छोटा DNA मॉलिक्यूल होता है। यह DNA आम क्रोमोसोम DNA से अलग होता है। प्लाज्मिड-DNA आमतौर पर बैक्टीरियल सेल में पाया जाता है और स्वतंत्र रूप से रेप्लिकेट हो सकता है।
प्लाज्मिड-DNA इंसानी शरीर में जाने पर वायरल प्रोटीन में बदल जाता है। इससे शरीर में वायरस के प्रति मजबूत इम्यून रिस्पॉन्स विकसित होता है। यह वायरस को बढ़ने से रोकता है। अगर कोई वायरस अपना आकार-प्रकार बदलता है यानी उसमें म्यूटेशन होता है तो इस वैक्सीन को कुछ ही हफ्तों में बदला जा सकता है।
बाकी वैक्सीन की तुलना में इसका रखरखाव ज्यादा आसान है। इसे 2 से 8 डिग्री तापमान पर स्टोर किया जा सकता है। यहां तक कि 25 डिग्री के रूम टेम्परेचर पर भी यह खराब नहीं होती है। इस वजह से इसके रखरखाव के लिए कोल्ड चेन की जरूरत भी नहीं पड़ती है। यहां तक कि कोरोना के नए वैरिएंट के लिए बाकी वैक्सीन की तुलना में इसे आसानी से मॉडिफाई भी किया जा सकता है।
कब तक मिल सकता है अप्रूवल ?
कैडिला इसी हफ्ते जायकोव-डी के इमरजेंसी अप्रूवल के लिए DGCI को आवेदन दे सकती है। वैक्सीन के फेज 3 के ट्रायल का डेटा एनालिसिस लगभग तैयार है। कंपनी ने सरकार को इसकी जानकारी दे दी है। इस वैक्सीन का टेस्ट बड़ों के अलावा 12 से 18 साल के बच्चों पर भी किया जा रहा है। जिन लोगों को पहले से गंभीर बीमारियां हैं। उन पर भी इस वैक्सीन को टेस्ट किया जा रहा है।
कैडिला ने देशभर के 20 सेंटर्स पर तीसरे फेज के ट्रायल किए हैं। हर सेंटर पर 12 से 18 साल तक के 20-20 बच्चे भी ट्रायल का हिस्सा थे। ट्रायल में शामिल सेंटर्स की ओर से कहा गया है कि वैक्सीन के बच्चों पर कोई साइड इफेक्ट दिखाई नहीं दिए हैं। उम्मीद है कि जल्द ही देश को बच्चों की पहली वैक्सीन मिल जाएगी। इसके अलावा कंपनी जल्द ही 5 से 12 साल के बच्चों पर भी वैक्सीन का ट्रायल कर सकती है। अगर ट्रायल के नतीजे उत्साहजनक रहे तो वैक्सीनेशन का दायरा और बढ़ सकता है।
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वहीं जायडस कैडिला के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉक्टर शर्विन पटेल ने पिछले दिनों कहा था कि हमें उम्मीद है कि हम जुलाई तक इस वैक्सीन का बड़ी मात्रा में उत्पादन शुरू कर देंगे। साफ है कि कंपनी को इस महीने के अंत तक या फिर जुलाई की शुरुआत में अप्रूवल मिलने की उम्मीद है।
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